भौगोलिक रूप से एक दूसरे के करीब होने के बावजूद इन दोनों सभ्यताओं में कभी विश्वास कायम नहीं हो सका। हालिया घटनाओं ने इस टकराव को और हवा दी और यूरोप में मौजूद बड़ी इस्लामी अरबी आबादी से इन धमाके के साजिशकर्ताओं को अपने मंसूबों को अंजाम देने में आसानी हो गई है। इस बात को समझने की जरूरत है अमेरिका और यूरोप के देशों ने जब से मध्य पूर्व में लोकतंत्र बहाली अभियान के तहत पहले से स्थापित सरकारों को हटाना या अस्थिर करना शुरू किया है तब तबसे यह समस्या तेजी से बढ़ी है। इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, मिस्र आदि देशों में पुरानी सरकारें भले ही लोकतांत्रिक नहीं थीं मगर उन्होंने अपने देश को संभाल कर रखा था और ऐसी ताकतों को नहीं उभरने देते थे जो दुनिया के लिए खतरा बनें। मगर इन सरकारों के हटने के साथ ही पहले अलकायदा, तालिबान और बाद में इस्लामिक स्टेट जैसी कट्टर ताकतें सिर उठाकर खड़ी हो गईं जो यूरोप और अमेरिका को इस्लाम के लिए खतरा करार देती हैं। इन कट्टर ताकतों को अपने देशों में राजनीतिक सामाजिक अस्थिरता से खाद पानी मिला।
इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता और लंबे समय से जारी लड़ाई का एक परिणाम यह निकला कि यहां की बड़ी आबादी सुकून की जिंदगी और दो वक्त की रोटी की तलाश में अपने निकट पड़ोसी यूरोप की ओर कूच करने लगी। अपनी क्षमता के अनुसार यूरोप ने इनमें से अधिकांश का स्वागत भी किया और उन्हें जरूरी सुविधाएं मुहैया कराईं। इसके बावजूद यह अरबी मुस्लिम आबादी यूरोप की मुख्यधारा का हिस्सा नहीं हैं। यूरोप के कई देश अबतक यह तय नहीं कर पाए हैं कि इन्हें अपनी आबादी में घुलने-मिलने दिया जाए या नहीं और धर्म को लेकर इनके ऊपर क्या नियम लागू होंगे। यही नहीं शिक्षा और रोजगार इनके लिए आज भी बड़ी समस्या हैं। स्थानीय सरकारों के खिलाफ इस शरणार्थी आबादी में आक्रोश पनप रहा है। ऐसे में इस्लाम पर खतरे के नाम पर तेज गति से इनका समर्थन जुटाना आईएसआईएस जैसे अतिवादी संगठनों के लिए बेहद आसान हो गया है।
आईएसईएस से भारत को होने वाले वाले खतरे की बात करें तो मुझे लगता है कि भारत की बनिस्पत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों को ज्यादा खतरा है क्योंकि इस्लाम के नाम पर यहां दखल बढ़ाना इस आतंकी संगठन के लिए ज्यादा आसान है। भारत के बारे में एक बाद समझने की जरूरत है कि सदियों से यहां अलग-अलग धर्म या समुदाय के लोग बाहर से आते रहे हैं और हमारे देश ने बाहें फैला कर उन्हें अपना लिया है। सभी समुदाय यहां के समाज में दूध में शक्कर की तरह मिल गए हैं। हां, यह जरूर है कि विकास के तमाम दावों के बावजूद भारत एक गरीब देश है और समाज के कई तबके विकास में अपना हिस्सा हासिल नहीं कर पाने के कारण असंतुष्ट हैं। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि इस असंतुष्टि को दूर रहे और सभी के लिए रोजगार और विकास के बराबर अवसर मुहैया कराए। धर्म के आधार पर कोई अपने आप को उपेक्षित न समझे इसके लिए भी प्रयास किए जाने की जरूरत है और हाल में हुए विश्व सूफी सम्मेलन जैसे आयोजन अच्छी पहल माने जा सकते हैं। अगर हम अपने समाज के हर हिस्से को आपस में जोड़कर रखेंगे तो आईएसआईएस जैसे किसी भी संगठन को यहां पैर पसारने का मौका नहीं मिल सकता।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव और कई देशों में भारत के राजदूत रहे हैं)
(सुमन कुमार से बातचीत पर आधारित)