28 फरवरी 1944 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में एक ऐसे सुर साधक का जन्म हुआ जिसने अपनी आशु रचना के माध्यम से एक नई सुर-गीत परंपरा की शुरुआत की। रचनाशीलता के साथ-साथ सात सुरों को साधने का हुनर भी जमकर दिखाया। ऐतिहासिक, पौराणिक आस्थावादियों को उनकी आवाज दैवीय शक्ति का संचार लगी। रामानंद सागर द्वारा निर्देशित धार्मिक धारावाहिक रामायण और महाभारत सहित श्रीकृष्ण के लिए उन्होंने अपनी आवाज से सबको चौंका दिया था। उनकी जादुई आवाज का आवाम पर असर इतना गहरा था कि लोग दूर से भी ध्वनि सुनते ही करबद्ध खड़े हो जाते थे।
14 जनवरी 1972 से संगीत की दुनिया में विधिवत प्रवेश करने के साथ ही अपने गीत-संगीत का जादू बिखेरना शुरू कर दिया। अधिकांश सुगढ़, सुसज्जित उत्कृष्ट विषय-विधान पर आधारित फिल्मों के नाम उनके नाम दर्ज है जैसे, सौदागर, तपस्या, चितचोर, सलाखें, फकीरा, दीवानगी, राम तेरी गंगा मैली, चोर मचाए शोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, पति,पत्नी और वो, अंखियों के झरोखों से, गीत गाता चल, पहेली, नदिया के पार आदि तमाम बेहतरीन फिल्में उनके संगीत के नाम हैं। इन सभी फिल्मों में वह जितने सुरीले संगीत सृजक थे, उतने ही कर्णप्रिय संगीत निर्देशक भी। इन्हीं रवीन्द्र जैन का 09 अक्टूबर 2015 को निधन हो गया।
गीता गाता चल ओ साथी, गुनगुनाता चल के साथ ही जब दीप जले आना की तान देने वाले रवीन्द्र जैन हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए। दुनियाभर के संगीत प्रेमियों ने मुग्ध होकर उनके गीतों सर-माथे सजाया। उनके गीतों में मार्मिकता, सहजता, प्रवाह छलकता है। जिसने एक बार उनका संगीत सुना वह बार-बार सुनने को विवश हो गए। अंखियों के झरोखों से मैंने जो देखा सांवरे की सांवरा-सलोना संगीत लोगों के दिलोदिमाग पर दस्तक दे रहा है।
एक से बढ़कर एक नायाब गीतों की सौगात देने वाले वाले इस संगीतकार ने एक अलग तरह का ‘रवीन्द्र संगीत’ रचा। बचपन हर गम से बेगाना होता है के अदभुत चितेरे, संगीत के जादूगर, रवीन्द्र जैन भले ही इस दुनिया से कूच कर गए पर उनका संगीत हमेशा हमारे साथ रहेगा। उनके नेत्रों में भले ही ज्योति नहीं थी मगर उनकी प्रतिभा की रोशनी से संगीत की दुनिया को रोशन कर दिया। अपनी सुमधुर संगीत की धुन से दुनिया को झंकृत करने वाले संगीतकार को हम कभी नहीं भुला पाएंगे। हमें जब भी वह याद आएंगे, उनके संगीत के प्रीत का काजल हमारे नयनों में भर जाएगा।