तीसरे विश्व युद्ध के रूप में लड़ी जा रही कोविड-19 की पहली लहर के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन डिप्लोमेसी, संक्रमण दर में कमी , कम मृत्यु दर ने मौजूदा सरकार को पोस्टर बाय बना दिया था। लेकिन वर्तमान समय में वही सरकार , मीडिया और विपक्षी दलों के निशाने पर है। सोशल मीडिया पर भी सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट रहा है। ऐसे माहौल में विपक्ष को भी जो पूरी तरह से दुबका बैठा था , उसे नया जोश मिल गया है। भले ही कांग्रेस पार्टी लोकप्रियता के मामले में अपने सबसे निचले स्तर पर है, लेकिन इस समय वह उसकी भरपाई करना चाहती है। और उसके लिए वह नाराज लोगों का नेतृत्व करने की भरपूर कोशिश कर रही है।
कोविड की दूसरी लहर ने अपनी संक्रामकता और भयावहता के से चिकित्सीय सुविधाओं के बुनियादी ढांचे को हिला कर रख दिया है। जबकि पहली लहर का भारत ने जिस तरह से सामना किया था उसकी वजह से डब्ल्यूएचओ भी उसके प्रबंधन से प्रभावित हुआ था। यह भी आशंका जताई जा रही है कि कहीं भारत को निशाना बनाकर उस पर जैविक हमला तो नहीं किया गया है। इस समय हम चीन में उत्पन्न हुए कोविड 19 वायरस के सबसे संक्रामक दुष्परिणामों से जूझ रहे हैं।
यह हमें ऐसे वक़्त प्रभावित कर रहा है जब हम हर तरह से महामारी पर विजय प्राप्त कर चुके थे। मसलन मरीजों के ठीक होने की संख्या तेजी से बढ़ी थी, सबसे कम मृत्यु दर, स्वदेशी उत्पादन, आर्थिक सुधार और विकास की रफ्तार फिर से तेज हो रही थी तथा सामाजिक जीवन सामान्य होने के साथ दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत हो गई थी। हम जो देख रहे हैं वह सिर्फ एक दूसरी लहर नहीं है बल्कि कोविड-19 की एक सुनामी है जो हमें घेर रही है। मौजूदा समय में 30% और उससे अधिक की उच्च पॉजिटिविटी दर और दैनिक मामले 400,000 से ऊपर पहुंच गए हैं। इस बीच, चीन बदले की भावना में लिप्त है। वह न केवल कोविड-19 युद्ध में जीत की घोषणा कर अपनी ताकत दिखा रहा है, बल्कि दोनों पक्षों द्वारा पहले से सहमत डी-एस्केलेशन प्रक्रिया से मुंह मोड़ चुका है।
हम इस समय एक राष्ट्रीय आपातकाल और एक अस्तित्वगत सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा के खतरे का सामना कर रहे हैं। राष्ट्रीय आपदा के समय, निराशा फैलाने, छाती पीटने और दोषारोपण में लिप्त होने के बजाय संकट से निपटने के लिए मनोबल और साहस का निर्माण करना सबसे ज्यादा जरूरी है। यह राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति और एकजुटता का समय है। इस बात को मानना चाहिए कि इस विदेश निर्मित वायरस ने हमारी सुरक्षा को भंग कर दिया है और हमारी 130 करोड़ आबादी पर कहर बरपा रहा है।
ऑक्सीजन और अस्पताल में बिस्तरों की उपलब्धता, वेंटिलेटर, लैब टेस्टिंग और अन्य बुनियादी ढांचे की कमी के मुद्दों पर यह सच है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने संक्रमण के पैमाने और इसकी गंभीरता तथा अपनी कमियों का अनुमान नहीं लगाया था। जिस पर अब काबू पाने की कोशिश की जा रही है। इस तरह की महामारी में इस तरह की कमी होती है । ऐसा जापान से अर्जेंटीना तक, अमेरिका से यूके तक सभी देशों में हो रहा है । बहुत कम आबादी वाले विकसित देशों में ऑक्सीजन की कमी और दम घुटने से होने वाली मौतों के भयावह दृश्य देखे गए। पीएम मोदी राज्यों को संभावित दूसरी लहर के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे रहे थे, लेकिन जैसा कि फाउची ने अपने 'टाइम्स नाउ' के इंटरव्यू में कहा है कि कोई भी देश महामारी की लहर की भयावहता का अनुमान नहीं लगा सकता है।
आइए, हम गहरी सांस लें और यह स्वीकार करें कि हम काफी बंटे हुए घर में रहते हैं और ऐसे घर अक्सर गिर जाते हैं। हम वायरस से लड़ने के लिए लोकतंत्र के रुप में केंद्र, राज्य की राजनीतिक शब्दावली और नागरिक व्यवहार दोनों की वजह से दंड भोग रहे हैं। हेगेल ने कहा था: "हम इतिहास से यही सीखते हैं कि हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते हैं"। इस राष्ट्रीय आपदा से युद्ध स्तर पर बिना किसी दोषारोपण के निपटना होगा। भारत को ऑक्सीजन, आवश्यक फार्मास्यूटिकल्स और दवाओं, वेंटिलेटर, चिकित्सा, अस्पताल और प्रयोगशाला के बुनियादी ढांचे और आपूर्ति में प्रभावी रूप से 'आत्मनिर्भर' होना चाहिए। और इस अभूतपूर्व आपदा का जवाब देने के लिए सभी आवश्यक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं का युद्ध स्तर पर नेतृत्व करना चाहिए। निजी क्षेत्र और सरकारों को इस राष्ट्रीय आपातकाल से निपटने के लिए बाजार की ताकतों का उपयोग करने के लिए एक साथ आना होगा, सामाजिक दूरी और कोविड उपयुक्त व्यवहार को लागू करना होगा, जमाखोरी और रैकेटिंग के दुष्चक्र को तोड़ना होगा और अपनी विशाल आबादी के लिए पर्याप्त टीकों का उत्पादन तेजी से करना होगा।
कोई भी सरकार राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता, समर्थन और एकता के बिना ऐसी विकट चुनौतियों का सामना नहीं कर सकती है। वायरस दुश्मन है, सरकार नहीं और हर पाप को केंद्र सरकार के मत्थे नहीं मढ़ना चाहिए। स्वास्थ्य राज्य का विषय है। राज्य सरकारों को राष्ट्रीय आपदा निवारण के लिए केंद्र द्वारा रोकथाम और संक्रमण में कमी के लिए उठाए गए कदमों में आगे बढ़ाने के लिए पूरक के रूप में निवेश करना है।
मृत्यु और निराशा के दुखद दृश्यों के बीच, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि टीकाकरण के मुद्दे पर विपक्ष विपरीत राजनीति कर रहा है। याद करिए कि कैसे उसने भारत बायोटेक की वैक्सीन का उपहास किया, शुरू में इसकी प्रभावकारिता को लेकर संदेह किया। जब लॉकडाउन की बात आती है, तो राहुल गांधी द्वारा पीएम मोदी पर निशाना साधने में नकारात्मकता का ही स्वरूप सामने आता है। एक साल पहले जब पीएम ने देशव्यापी लॉकडाउन किया तब भी उन्होंने विरोध किया था और अब अर्थव्यवस्था, गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों पर दुष्प्रभाव की परवाह किए बिना पूर्ण राष्ट्रीय लॉकडाउन की मांग कर रहे हैं।
हमें उम्मीद नहीं खोनी है। आइए, हम सरकार का समर्थन करने का संकल्प लें क्योंकि वह हमारे बीच इस अदृश्य दुश्मन का मुकाबला करने के लिए आगे बढ़ रही है। पोस्टमार्टम और दोषारोपण का समय खत्म हो गया है। आइए हम आगे बढ़ें और जैसा कि भगवद्गीता में लिखा गया है, सांख्य के ज्ञान के मार्ग और योगियों के कर्म के मार्ग को अपनाएं।
(लेखिका फ्रांस में भारत की राजदूत रह चुकी हैं)