संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी ने सोमवार को 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में खुली बहस के दौरान कहा कि यह भारत जैसे देशों के लिए एक चिंता विषय है जो परिषद में स्थायी रूप से बैठने का विशेषाधिकार नहीं रखते। मुखर्जी ने कहा कि सुरक्षा परिषद का चार्टर उद्देश्यों एवं सिद्धांतों को लेकर भेदभावपूर्ण है और शक्तिशाली सदस्यों के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल है।
भारत के प्रतिनिधि ने कहा कि भारत वैश्विक चुनौतियों का सहयोगात्मक तरीके से मिलकर मुकाबला करने का समर्थक है, खासकर विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन को उसका पूरा समर्थन है। आतंकवाद की मिसाल देते हुए मुखर्जी ने कहा कि जो चुनौतियां सीमा पार प्रकृति वाली हैं, उनमें ठोस कदम उठाने की जरूरत है। आतंकवाद को विकास के लिए सीधे तौर पर खतरा करार देते हुए मुखर्जी ने इसको लेकर चिंता जताई कि प्रमुख निर्णयों को लागू करने के मामले में परिषद सक्रिय नहीं रहा है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस वर्ष सुधार करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली संस्था कुछ ही देशों के अलोकतांत्रिक विशेषाधिकार का प्रतीक है जिसे युद्धकाल के ऐसे गठबंधन ने बनाया था जो अब अस्तित्व में नहीं है। मुखर्जी ने मेंटिनेंस ऑफ इंटरनेशनल पीस एंड सिक्योरिटी विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक खुली बैठक को संबोधित करते हुए कहा, लोकतंत्र का तर्क और विश्वभर में मानवीय पीड़ा से दुखी चेहरे परिषद में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं। यदि हमें इतिहास से सही सीख लेनी है तो हमें यह इसी वर्ष करना होगा। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का उचित दावेदार है। सुरक्षा परिषद के वीटो शक्ति वाले लगभग सभी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली शाखा में भारत को शामिल करने का समर्थन किया है।