दोनों का मानना है कि इस्लाम में कट्टरता के पीछे सऊदी अरब की उग्र मान्यताएं मुख्य दोषी हैं। हिलेरी ने आरोप लगाया है कि सऊदी अरब उन चरमपंथी मदरसों और मस्जिदों को आर्थिक मदद देता है जो युवाओं को कट्टर बना रहे हैं। वहीं ट्रंप भी सऊदी अरब को आतंकवाद का सबसे बड़ा आर्थिक मददगार करार दे चुके हैं।
ऐसा ही नजरिया मुस्लिम देशों में दूत के तौर पर तैनात रहे और 80 देशों में घूम चुके फराह पंडित का भी है। फराह पंडित लिखते हैं कि अगर सऊदी खुद को नहीं रोकेगा तो इसके कूटनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दुष्परिणाम उठाने पड़ेंगे। दुनिया भर के टीवी विशेषज्ञ और स्तंभकार जिहादी हिंसा के लिए सऊदी को दोषी ठहराते हैं। एचबीओ के बिल महर ने भी सऊदी की शिक्षा को 'मध्य युगीन' विशेषण से नवाजा है। इंटरनेशनल स्कॉलर फरीद जकारिया ने वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा कि 'सऊदी ने इस्लाम की दुनिया में एक राक्षस का सृजन किया है।'
अब यह विचार आम हो गया है कि सऊदी अरब कठोर, धर्मांध, पितृसत्तात्मक और कट्टरपंथी इस्लाम 'वहाबीवाद' का प्रणेता है। इस वहाबी विचारधारा से वैश्विक उग्रवाद और आतंकवाद को ईंधन मिलता है। दुनिया भर में जितनी तेजी से आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के हमले बढ़े हैं, इस्लाम पर सऊदी प्रभाव की एक पुरानी बहस प्रासंगिक हो गई है।(एजेंसी)