ट्रंप ने कल एक ट्वीट में कहा, जब तक परमाणु हथियारों के मामले में दुनिया को सद् बुद्धि नहीं आ जाती, तब तक अमेरिका को अपनी परमाणु क्षमताओं को अत्यधिक मजबूती और विस्तार देना चाहिए।
द वाशिंगटन पोस्ट ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव बताया है जबकि अमेरिका में परमाणु अप्रसार की मजबूत लॉबी ने आगामी राष्ट्रपति की ओर से आए ऐसे बयान पर अपनी चिंता जाहिर की है।
सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन-प्रोलिफरेशन के कार्यकारी निदेशक और 18 साल तक कांग्रेस के सदस्य रह चुके जॉन टियरने ने कहा, महज 140 अक्षरों का इस्तोमाल कर अमेरिका में एक बड़े बदलाव की घोषणा कर देना नव निर्वाचित राष्ट्रपति के लिए खतरनाक है। परमाणु हथियार नीति बारीक, जटिल है और यह इस ग्रह के हर व्यक्ति को प्रभावित करती है।
उन्होंने कहा कि शीतयुद्ध के बाद से यह द्विपक्षीय सहमति बनी रही है कि अमेरिकी रक्षा नीति में परमाणु हथियारों पर निर्भरता कम होनी चाहिए और परमाणु युद्धक सामग्री के संपूर्ण भंडार में कमी आनी चाहिए।
टियरने ने कहा, परमाणु हथियारों के विस्तार का आहवान इस आम सहमति को तोड़ता है। यह अमेरिका की रूस के साथ हुई प्रमुख हथियार नियंत्रण संधि के उल्लंघन की स्थिति में ला देगा। यह निश्चित तौर पर नए परमाणु हथियारों की एक दौड़ शुरू कर देगा। इस समय 7000 से ज्यादा मुखास्त्र रखने वाले अमेरिका के पास परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा जखीरा है। इसके बाद रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन का स्थान है।
सांसद ने कहा, और अधिक परमाणु हथियार बनाना या परमाणु विस्फोटक शक्ति बढ़ाना बाकी दुनिया को यह संदेश देता है परमाणु अप्रसार अब अमेरिका का मुख्य लक्ष्य नहीं रह गया। उन्होंने कहा, यह विनाशकारी परमाणु दुर्घटना या आदान-प्रदान की आशंकाएं भी बढ़ा देगा। अमेरिकी परमाणु हथियारों की नीति को इतना अधिक बदल देने के संभावित परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
परमाणु हथियारों के मुद्दे पर यह बयान देने से एक ही दिन पहले ट्रंप ने पेंटागन के शीर्ष जनरलों से मुलाकात की थी। इन जनरलों में रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता एवं परमाणु एकीकरण के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ, वायुसेना के लेफ्टिनेंट जनरल जैक वीनस्टीन भी शामिल थे।
मौजूदा योजनाएं पहले ही अमेरिकी परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण और रखरखाव के लिए एक खरब डॉलर खर्च करने का आवान कर चुकी हैं। पेंटागन ने इस खर्च की समर्थता के मामले में चिंता जाहिर की है।
भाषा