पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए इस क्षेत्र में चीन ने बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश किया है। जो ग्वादर बंदरगाह चीन पाकिस्तान में बना रहा है वह दरअसल बलूचिस्तान में ही है। इस बंदरगाह तक आने वाले सामान को चीन बलूचिस्तान के रास्ते आगे ईरान और दूसरे देशों तक ले जाने का मंसूबा बांधे है। अगर बलूचिस्तान में आजादी की जंग जारी रही तो चीन के माल का यहां से सुरक्षित आवागमन खटाई में पड़ जाएगा और इसके साथ ही खरबों रुपये का निवेश भी बर्बाद हो जाएगा।
इसी को भांपते हुए चीन में दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ हू शिशेंग ने कहा कि यदि भारत अपने रवैये पर अडिग रहता है और इसके चलते चीन की ग्वादर तक बनने वाले औद्योगिक गलियारे की संभावनाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो इससे भारत और चीन के रिश्तों में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है।
हू शिशेंग ने कहा, 'यदि ऐसा होता है तो चीन और पाकिस्तान के पास भारत के खिलाफ एकजुट होकर कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा। ऐसे में तीनों ही देश आर्थिक एवं सामाजिक विकास के पटरी से उतर सकते हैं। यह सबके लिए काफी बुरा हो सकता है। इससे भारत-चीन के रिश्तों में एक बार फिर तनाव की स्थिति आ सकती है। यह मुद्दा तिब्बत, सीमा विवाद और व्यापारिक असंतुलन से भी बड़े विवाद का रूप ले सकता है।
चीन के विदेश मंत्रालय से जुड़े चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेसंस के थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ ऐंड साउथ-ईस्ट एशियन ऐंड ओशियनिक स्टडीज के निदेशक हू ने कहा कि ऐसी स्थिति चीन और भारत से जुड़े विद्वानों के लिए खासी चिंताजनक होगी। हू ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस जैसे अहम मौके पर पीएम मोदी की ओर से पाक के बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाए जाने से चीनी विद्वान बेहद परेशान हैं।
वैसे अब तक चीनी विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं की है। पाक का बलूचिस्तान सूबा पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे का हब है। यह गलियारा चीन के शिनजियांग को बलूचिस्तान से जोड़ेगा। हू ने कहा कि मेरा मानना है कि इस आर्थिक गलियारे के निर्माण के लिए पाकिस्तान और चीन सुरक्षा के सभी उपाय करेंगे। यह किस तरह से होंगे इसके बारे में अभी कोई आइडिया नहीं है।