पाकिस्तान के पेशावर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय पर इस्लामिक कट्टरपंथियों के बढ़ते हमलों से अब सिख देश के दूसरे हिस्सों में पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेशावर के 30 हजार सिखों में से 60 प्रतिशत से ज्यादा अब पलायन कर या तो देश के दूसरे हिस्सों में चले गए हैं या फिर भारत आकर बस गए हैं।
पाकिस्तान सिख काउंसिल (पीसीएस) के एक सदस्य ने कहा कि उनके समुदाय का इसलिए सफाया किया जा रहा है क्योंकि वे अलग दिखते हैं। पीसीएस सदस्य बलबीर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए अपनी पगड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा,'यह आपको आसान शिकार बनाता है।' कुछ सिखों का आरोप है कि आतंकी समूह तालिबान इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है।
साल 2016 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के सांसद सिख समुदाय के सोरन सिंह की हत्या कर दी गई थी। तालिबान द्वारा इस हत्या की जिम्मेदारी लिए जाने के बावजूद, स्थानीय पुलिस ने इस हत्या के आरोप में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और अल्पसंख्यक हिंदू राजनेता बलदेव कुमार को गिरफ्तार किया। हालांकि, दो साल तक सुनवाई चलने के बाद सबूतों के अभाव में बलदेव सिंह को रिहा कर दिया गया।
स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि अब सिखों को अपनी पहचान छिपाने के लिए बाल कटवाने पड़ रहे हैं और पगड़ी हटानी पड़ रही है। सिख समुदाय के लिए एक और बड़ी समस्या यह है कि पेशावर में उनके लिए श्मशान की कमी है। खैबर पख्तूनवा सरकार ने श्मशान के लिए बीते साल धन आवंटित किया था लेकिन अभी तक इसका काम शुरू नहीं हुआ है।
इतना ही नहीं श्मशान के लिए आवंटित जमीन को अब प्राइवेट बैंक, वेडिंग हॉल और कंपनियों दिया जा रहा है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, पाकिस्तानी सरकार इस तथ्य को नजरअंदाज कर रही है कि सिख समुदाय को उसके समर्थन और सुरक्षा की जरूरत है।