नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं लेकिन इस बार उनके शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देश पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया है। इस पर पाकिस्तान ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घरेलू राजनीति उन्हें पाकिस्तानी समकक्ष को बुलाने की इजाजत नहीं देती है।
शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक देशों बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान को आमंत्रित किया गया है। मोदी ने 2014 में अपने पहले कार्यकाल के लिए शपथ लेने के दौरान सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था। इसमें पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल थे।
माना जा रहा है कि फरवरी में पुलवामा में सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव के चलते मोदी सरकार ने पाक से दूरी बनाने का फैसला लिया है। हालांकि पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने नरेंद्र मोदी को चुनाव में बड़ी जीत पर फोन कर बधाई दी थी। इस दौरान भी पीएम मोदी ने इमरान को एक तरह से नसीहत देते हुए कहा था कि पड़ोस का माहौल आतंकमुक्त होना चाहिए और दोनों देशों को आपस में विवाद की बजाय गरीबी से लड़ना चाहिए।
पाक विरोध पर आधारित था कैंपेन
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि पीएम मोदी का पूरा चुनावी कैंपेन ही पाकिस्तान विरोध पर आधारित था। उनसे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह जल्द अपने पाक विरोधी राग से छुटकारा पा सकते हैं।
विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमरान खान को आम चुनाव में जीतने के बाद बधाई दी थी और एक खत भी लिखा था। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते लेन देन पर आधारित हैं और पीएम इमरान खान ने मोदी को सद्भावना के तौर पर मोदी को जीत की बधाई दी थी।
समाधान निकालने की हो कोशिश
कुरैशी ने कहा कि बातचीत जारी करने का नया रास्ता निकालना भारत के लिए जरूरी है। अगर मोदी इस क्षेत्र का विकास चाहते हैं तो इसका केवल एक ही रास्ता है कि पाकिस्तान के साथ बैठकर समाधान निकालने की कोशिश की जाए। यह पाकिस्तान के हित में भी है कि दोनों देशों के बीच तनाव खत्म हो जाए। पाकिस्तान ने तनाव पैदा नहीं किया।