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ऐतिहासिक जलवायु समझौते को मंजूरी, जानिए इसकी खास बातें

दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिए विश्‍व के 196 देशों के बीच पेरिस में ऐतिहासिक हो गया है। लंबी खींचतान और विचार-विमर्श के बाद भारत, चीन, अमेरिका समेत छोटे-बड़े तमाम देश इस समझौते पर राजी हुए। इसमें धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखने का लक्ष्‍य रखा गया है।
ऐतिहासिक जलवायु समझौते को मंजूरी, जानिए इसकी खास बातें

विकसित देशों ने विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष 100 अरब डालर की प्रतिबद्धता जताई है। हालांकि, अमेरिका के दबाव के चलते इसे कानूनी तौर पर बाध्‍यकारी नहीं बनाया गया है। 

शुरू में यह संभावना थी कि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री से काफी नीचे 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित रखने का भारत और चीन जैसे विकासशील देश विरोध करेंगे जो औद्योगीकरण के कारण कार्बन के बड़े उत्सर्जक हैं लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने 31 पन्ने के दस्तावेज का स्वागत किया है। इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने परोक्ष रूप से भारत को समझौते के पक्ष में मनाने के लिए प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी को फोन किया। 

195 देशों के प्रतिनिधियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच फ्रांस के विदेश मंत्री लाउरेंट फैबियस ने एेतिहासिक समझौते को मंजूर किए जाने की घोषणा की। विभिन्‍न देशों के बीच समझौते को लेकर आम सहमति का तब प्रदर्शन हुआ जब मंत्रियों ने कई मिनट तक खड़े रहकर तालियां बजाईं और इसका स्‍वागत किया। फैबियस ने दावा किया कि 31 पृष्ठों वाला यह समझौता जलवायु न्याय की धारणा को स्वीकार करता है और यह देशों की अलग-अलग जिम्मेदारियों और उनकी अलग-अलग स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में गौर करता है। यह समझौता 2020 से लागू होगा और माना जा रहा है कि अमीर व गरीब देशों के बीच दशकों से जारी गतिरोध को समाप्त करता है कि ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए आगेे कैसे बढ़ाना है।  

पेरिस जलवायु समझौते के अहम बिंदु 

- विकसित देश 2020 से विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 100 अरब डालर जुटाने पर सहमत हुए। यद्यपि अमेरिका की आपत्ति के बाद इसे समझौते के कानूनी रूप से बाध्यकारी अनुभाग में नहीं जोड़ा गया। 

- सभी देश कार्बन उत्सर्जन में जल्द से जल्द कटौती लाने के प्रयास करेंगे। . 

- ग्रीन हाउस गैसों और उनके स्रोत के बीच 2020 तक संतुलन बनाया जाएगा। 

- वैश्विक तापमान में वृद्ध‍ि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कीे कोशिश।  

-जलवायु परिवर्तन समझौते पर सभी देश अगले साल 22 अप्रैल को औपचारिक रूप से हस्ताक्षर करेंगे। 

 

भारत ने किया समझौते का स्‍वागत 

पेरिस समझौते का स्‍वागत करते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि भारत पिछले एक वर्ष से दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं - जलवायु न्याय और सतत जीवनशैली पर जोर दे रहा था। दोनों को समझौते की प्रस्तावना में शामिल किया गया है। यह भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह समझौता एक बेहतर भविष्य का वादा करता है और सात अरब लोगों के जीवन में उम्मीद का एक अध्याय जोड़ता है।

जावड़ेकर ने हालांकि यह भी कहा कि विकसित देशों द्वारा उठाए गए कदम उनकी एेतिहासिक जिम्मेदारियों और उचित हिस्सेदारियों से कहीं कम हैं वरना यह समझौता कहीं अधिक महत्वाकांक्षी हो सकता था। समझौते के कई प्रावधानों पर हम बीच का रास्ता निकालने की भावना के साथ राजी हुए हैं। जावड़ेकर के मुताबिक, वार्ताओं में लेनदेन सामान्य बात है। हम कई मित्राें की इस चिंता को मानते हैं कि यह समझौता हमें तापमान वृद्धि को दो डिग्री से कम रखने के मार्ग पर नहीं रखता। 

जलवायु समझौते के मसौदा का मूलपाठ कमजोर: सीएसई

जलवायु समझौते के मसौदे के मूलपाठ को भारत के सेंटर फाॅर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने कमजोर और गैर-महत्वाकांक्षी करार दिया है। सीएसई ने कहा कि इसमें उत्सर्जन कम करने के लिए विकसित देशों के लिए कोई भी अर्थपूर्ण लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं। यह एक सार्वभौमिक समझौता है जो कि विकसित दुनिया की एेतिहासिक जिम्मेदारी को मिटा देगा और भारत जैसे विकासशील देशों पर इसके भार को समान रूप से डाल देगा।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि भारत ने कम से कम इस तथ्य को रखने का काम किया कि इस समझौते को समानता के सिद्धांत के साथ लागू किया जाए लेकिन हम अभी भी इसे समान रूप से लागू करने के लायक नहीं हैं। यही चिंता का मूल है और यह भारत के लिए काफी मुश्किल लड़ाई है। उन्होंने कहा कि पहले मसौदे से अब तक समानता को मिटाया गया है और इस मसौदे में एेतिहासिक जिम्मेदारियों का कोई जिक्र नहीं है।

 

 

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