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दुनिया में एक साल में संक्रमण्‍ा ने 10 लाख नवजात शिशुओं को लील लिया

दुनिया में भले ही हर तरफ विकास की बात कही जा रही है लेकिन नवजात बच्‍चों की दुर्दशा पर कुछ खास ध्‍यान नहीं दिया जा रहा है। या यूं कहें कि विश्‍व का मानव समाज इस मसले पर मौन होकर अपनी हार स्‍वीकार करता जा रहा है। मानव समुदाय एक तरह से नवजात श्‍िाशुओं की हिफाजत नहीं कर पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की ताजा रिपेार्ट में कहा गया है कि दुनिया में विभिन्‍न तरह के संक्रमण की वजह से पैदा होने के साथ ही दस लाख बच्‍चों ने दम तोड़ दिया।
दुनिया में एक साल में संक्रमण्‍ा ने 10 लाख नवजात शिशुओं को लील लिया

रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल इन बच्चों में से पांच वर्ष से कम आयु वाले 59 लाख बच्चों में से आधे ऐसी बीमारियों का काल बन गए, जिन्हें समय रहते एहतियाती उपाय कर रोका जा सकता था। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर इन बीमारियों की रोकथाम नहीं की गई तो 2030 तक इनसे मरने वाले शिशुओं की संख्या बढकर छह करोड़ 90 लाख हो जाएगी।

यूनीसेफ के अनुसार जो बीमारियां शिशुओं के लिए जानलेवा साबित होंगी उनमें निमोनिया, पेचिश, मलेरिया, मस्तष्क ज्वर, टेटनस, चेचक और सेप्सिस प्रमुख होंगे। रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका, मध्य अफ्रीका तथा दक्षिण और पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में पांच साल से कम आयु के शिशुओं की मौत का मुख्य कारण निमोनिया और पेचिश जैसी बीमारियां रही हैं। इन बीमारियों से मरने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब तबके के रहे।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दक्षिण एशिया में केवल शिशु मृत्यु दर ही नहीं बल्कि नवजातों की मृत्यु दर भी दुनिया के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा काफी ज्यादा है। समय के साथ शिशु मृत्यु दर के मामले एक क्षेत्र विशेष में केन्द्रित होते जा रहे हैं। साल 2015 में जहां 80 प्रतिशत ऐसे मामले दक्षिण एशिया और उपसहारा अफ्रीकी क्षेत्र में हुए। इनमें से आधे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथोपिया, भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान में देखने को मिले।

यूनीसेफ की रिपोर्ट में बंधुआ बाल मजदूरी का उल्‍लेख करते हुए कहा गया है कि आज के आधुनिक युग में भी यह प्रथा अपने क्रूरतम रूपों में जीवित है। विकसित देशों में भी यह मौजूद है। रिपोर्ट में ताजा आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि दुनिया में इस समय 15 करोड़ बाल मजदूर हैं।

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