भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के मंच पर विकासशील देशों और गैर-प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों की आवाज को उचित स्थान दिलाने के लिए इस विश्व निकाय की सुरक्षा परिषद की स्थायी और गैर-स्थायी श्रेणियों में विस्तार ‘बेहद आवश्यक’ है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत रुचिरा कम्बोज ने यह भी कहा कि दोनों श्रेणियों का विस्तार सुरक्षा परिषद के निर्णय लेने की गति को समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप लाने का एकमात्र तरीका है। कम्बोज ने यह टिप्पणी गुरूवार को अंतरसरकारी वार्ताओं (आईजीएन) पर पूर्ण अनौपचारिक बैठक को संबोधित करते हुए की।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें एक ऐसी सुरक्षा परिषद की आवश्यकता है जो आज संयुक्त राष्ट्र की भौगोलिक और विकासात्मक विविधता को बेहतर ढंग से दर्शाती हो। एक ऐसी सुरक्षा परिषद की आवश्यकता है, जहां विकासशील देशों और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया तथा प्रशांत क्षेत्रों की व्यापक आबादी सहित गैर-प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों की आवाजें अपना उचित स्थान पा सकें।’’
उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 15 देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद में दोनों श्रेणियों की सदस्यता का विस्तार नितांत आवश्यक है।
कम्बोज ने कहा, “यह परिषद की संरचना और निर्णय लेने की गति को समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप लाने का एकमात्र तरीका है। यदि (सदस्य) देश वास्तव में सुरक्षा परिषद को अधिक जवाबदेह और विश्वसनीय बनाने में रुचि रखते हैं, तो हम उनसे खुलकर सामने आने और संयुक्त राष्ट्र में एकमात्र स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से समयबद्ध तरीके से इस सुधार को प्राप्त करने के लिए एक स्पष्ट मार्ग का समर्थन करने का आह्वान करते हैं। यह विषय-वस्तु के आधार पर होना चाहिए, न कि एक-दूसरे के खिलाफ बोलकर या ‘अपनी डफली, अपना राग’ बजाकर किया जाना चाहिए, जैसा हमने पिछले तीन दशकों से किया है।’’
बैठक दो बिंदुओं पर बुलाई गई थी- पहला, विस्तारित सुरक्षा परिषद का आकार एवं इसकी कार्य पद्धति तथा सुरक्षा परिषद और महासभा के बीच संबंध।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के अध्यक्ष सिसाबा कोरोसी ने इसे ‘‘परिवर्तनकारी कदम’’ करार दिया और आईजीएन की सह-अध्यक्षता करने वाले कुवैत के स्थायी प्रतिनिधि तारेक अलबनाई और ऑस्ट्रिया के स्थायी प्रतिनिधि एक्सल मार्शिक के प्रति आभार व्यक्त किया।
भारत और जी-4 के अन्य तीन देशों- ब्राजील, जर्मनी और जापान ने बार-बार कहा है कि आईजीएन में खुलेपन और पारदर्शिता की कमी है।
कम्बोज ने कहा, ‘‘हम सभी इस बात पर सहमत हैं कि सुरक्षा परिषद के आकार को और अधिक वैध और प्रतिनिधि-परक बनाने के लिए इसका विस्तार किया जाना चाहिए।’’
परिषद में फिलहाल पांच स्थायी सदस्य - चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका और 10 निर्वाचित गैर-स्थायी सदस्य हैं, जिनकी गैर-स्थायी सदस्यता दो साल के लिए होती है। भारत ने पिछले साल दिसंबर में परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया है।
इसके अलावा, कम्बोज ने यह भी कहा कि सुरक्षा परिषद के एजेंडे में ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सात दशकों से अधिक समय से चर्चा नहीं हुई है।