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स्वीटी या हनी बुलाना पसंद नहीं : इंदिरा नूई

पेप्सिको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी और भारतवंशी इंदिरा नूई को स्वीटी या हनी बुलाया जाना पसंद नहीं है, लिहाजा नूई इस बात की पुरजोर वकालत करती हैं कि कार्यक्षेत्र और समाज में महिलाएं बराबरी का दर्जा पाने की हकदार हैं। उनका कहना है कि एक व्यक्ति के तौर पर महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें इस तरह के स्वीटी, हनी जैसे नामों से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए।
स्वीटी या हनी बुलाना पसंद नहीं : इंदिरा नूई

न्यूयार्क टाइम्स के सहयोग से आयोजित वुमेन इन द वर्ल्ड शिखर सम्मेलन में पत्रकारों और लेखिका टीना ब्राउन की मौजूदगी में कल नूई ने कहा, ‘हमें अब भी बराबरी का दर्जा मिलना बाकी है। मुझे स्वीटी या हनी बुलाया जाना पसंद नहीं है, जिससे लोग अब भी मुझे अक्सर संबोधित करते हैं। हनी, स्वीटी, बेब जैसे संबोधनों के बजाय लोगों को हमसे एक कार्यकारी और सामान्य लोगों के तौर पर बर्ताव करना चाहिए। इसे बदलना होगा।’

नूई ने कहा कि अपने समान वेतन की मांग को लेकर लड़कों की जमात में शामिल होने के लिए कई साल से महिलाएं क्रांति के अंदाज में हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने अपनी डिग्री, स्कूलों में अच्छे ग्रेड से कार्यक्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, जिसके कारण पुरुष समकक्षों ने हमें गंभीरता से लिया। उन्होंने कहा, ‘इस कार्यक्षेत्र में हमने क्रांतिकारी रूप से अपना रास्ता बनाया। इसके बाद हमें वेतन में बराबरी की जरूरत है, जिसके लिए हम अब तक लड़ाई लड़ रहे हैं।’

बहरहाल, नूई ने खेद जताते हुए कहा कि कार्यक्षेत्र में महिलाएं अन्य महिलाओं की मदद नहीं करतीं, जो कि उन्हें अधिक से अधिक करना चाहिए। उन्होंने महिलाओं से आपसी सहयोग को और मजबूत करने को कहा। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि महिलाएं अक्सर दूसरी महिलाओं से मिली जानकारियों और अनुभवों को सकारात्मक रूप से नहीं लेतीं। लेकिन, यही प्रतिक्रिया पुरुषों से मिलने पर लोग उसे स्वीकार करने से नहीं हिचकते।

अपने कॅरिअर और निजी जीवन के बीच उन्होंने किस तरह से सामंजस्य बनाया, इस बारे में पूछे जाने पर नूई ने कहा कि अपने पेशे और पारिवारिक जीवन के बीच सामंजस्य बैठाना उनके लिए आसान नहीं था। यह पूछे जाने पर कि क्या अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखने पर उन्हें किसी बात का अफसोस है, इस पर नूई ने कहा कि वैसे तो उन्हें अपने कॅरिअर को आगे बढ़ाने का कोई पछतावा नहीं है, लेकिन उनके दिल में इस बात का मलाल जरूर है कि वह अपनी बेटियों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाइ।

नूयी ने इस बात पर जोर दिया कि मातृत्व और पितृत्व अवकाश को 52 हफ्तों के लिए बढ़ाया जाना ही काफी नहीं है, क्योंकि बच्चा तब महज एक साल का ही होता है और अपने बच्चे को घर पर छोड़कर काम पर ध्यान लगाना कोई आसान काम नहीं है।

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