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प्रवासी पक्षी , सियासी दाने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता संभालने के बाद से प्रवासी भारतीयों पर खास ध्यान रखे हुए हैं। इसकी झलक सात से नौ जनवरी तक गुजरात के गांधीनगर में हुए भव्य प्रवासी सम्मेलन में दिखाई दी। घोषणाएं तो खूब हुईं लेकिन इसके जवाब में प्रवासी निवेश कितना आएगा, इसे लेकर दुविधा ज्यों की-त्यों बरकरार है।
प्रवासी पक्षी , सियासी दाने

इस सम्मेलन के मद्देनजर केंद्र सरकार प्रवासी भारतीयों सहित भारतीय मूल के लोगों को भारत में निवेश के लिए जहां तमाम तरह की रिआयतें दे रही है। यह अलग बात है कि  अभी भी प्रधानमंत्री का सारा जोर गुजरात ही बना हुआ है, भले ही उन्हें केंद्र की कमान थामें छह महीने से अधिक समय हो गया है।ठीक ऐसे समय सर्वोच्च अदालत का यह निर्देश आना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है जिसमें उसने केंद्र सरकार से प्रवासी भारतीयों के इलेक्ट्रॉनिक वोट की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने को कहा है। कमोबेश इसी तरह का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवासी भारतीयों से किया था और इसका दूरगामी प्रभाव भाजपा के विदेशों में फैले आधार पर पड़ेगा। यह भी दिलचस्प था कि प्रवासी भारतीय को आकर्षित करने के लिए इस बार महात्मा गांधी के नाम का बखूबी इस्तेमाल किया गया। इस सम्मेलन को महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से वापसी के 100 साल पूरे होने पर ङ्तसर्वश्रेष्ठ प्रवासी भारतीय- के रूप में मनाया गया। सम्मेलन स्थल पर महात्मा मंदिर परिसर 60,000वर्ग मीटर में बनाया गया था। कार्यफ्म के दौरान महात्मा गांधी के स्वदेश लौटने के 100 साल पूरे होने पर विशेष डाक टिकट और सिक्के भी जारी किए गए।

चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में हुए अपने भव्य आयोजनों में कई चमक-दमक वाली घोषणाएं कर आए थे इसीलिए प्रवासी सम्मेलन से पहले उनमें से कुछ को जल्द से जल्द पूरा करने की कवायद की गई। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने प्रवासी सम्मेलन से ठीक पहले एक अध्यादेश जारी किया जिसमें भारतीय मूल के लोग (पीआईओ) और भारतीय नागरिकता (ओसीआई) योजना का विलय कर एक किए जाने का प्रावधान है। इसके तहत पीआईओ कार्डधारी लोगों को जीवन भर के लिए भारतीय वीजा मिल सकेगा। नए कार्ड का नाम इंडियन ओवरसीज कार्ड होगा। इस अध्यादेश का असर सम्मेलन पर दिखाई दिया। इसके इर्द-गिर्द बहुत तगड़ा ध्रुवीकरण दिखाई दिया और इसका असर आने वाले दिनों में नजर आने की संभावना है।

महात्मा मंदिर में आयोजित इस कार्यफ्म में 58 देशों के करीब 4 हजार अप्रवासी भारतीयों ने हिस्सा लिया। कार्यफ्म के दौरान बापू के स्वदेश लौटने के 100 साल पूरे होने पर विशेष डाक टिकट और सिक्के भी जारी किए गए।

प्रवासी भारतीयों को दिए जा रहे महत्व से कुद कई प्रवासी भारतीय भी चिंतित हैं। उनका मानना है कि यह नए तरह के उपनिवेशवाद को बढ़ावा देने वाली प्रवृत्ति है। इस बारे में आउटलुक से बात करते हुए वाशिंगटन में पढ़ रही लक्ष्मी गोपाल ने कहा कि आखिर प्रवासी भारतीयों के लिए इतने पलक पावडे बिछाने की क्या जरूरत है, वे अपने कारोबार के लिए भारत छोड़ बाहर गए और अगर भारत आएंगे तो बिजनेस के ही लिए। इसमें क्या वे भारत पर कोई परोपकार कर रहे हैं, नहीं। पूंजीवाद के सिद्धांत के अनुसार भी इस तरह का विशेष दर्जा दिया जाना दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। व्यापार को व्यापार की शर्तो पर ही किया जाना चाहिए, नहीं तो यह घातक हो जाता है। यह नए किस्म के उपनिवेशवाद को जन्म दे रहा है, जिसका गहरा रिश्ता बढ़ रहे धार्मिक और नस्ली उन्माद से होता है। अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का भी मानना है कि अभी तक इस तरह के प्रोत्साहनों से फिलहाल कोई लाभ नहीं होता दिखाई दे रहा है। भारत में निवेश आने के लिए बहुत सी चीजों की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय स्थितियिं और बाजार की स्थिति पर भी निवेश की आवाजाही बहुत निर्भर करती है। अभी सिर्फ वायदे हैं, बातें हैं, घोषणाएं हैं और इन पर कोई पैसा नहीं लगाता। जितने भी कदम हैं, वे अभी अध्यादेश के जरिए आए हैं और इन पर लंबा निवेश बहुत भरोसा नहीं करेगा। मोदी को इस बात का आभास था और इसीलिए वाइब्रेंट गुजरात में उन्होंने अपने भाषण में ही इस बात को रखा कि बढ़-चढ़ बात करके  वह माहौल बनाने और अपनी ही सरकार पर दबाव बनाने का काम कर रहे हैं। प्रवासी सम्मेलन में भी उन्होंने जो कहा उस पर ध्यान देने की जरूरत है,  कई लोग प्रवासी भारतीय सम्मेलन को अलग नजर से देखते हैं। उनको लगता है कि सरकार की प्रवासी भारतीयों से काफी अपेक्षा है और इसी वजह से उन्हें हर साल यहां बुलाया जाता है, लेकिन मुझे लगता है  कि अपने लोगों से मिलने का मौका अपने आप में ही काफी खुशी लेकर आता है। हर रिश्ते को डॉलर और पाउंड से नहीं तौला जा सकता। प्रवासी भारतीयों से हमारा रिश्ता उससे कहीं बड़ा है। उन्होंने इस मौके पर अपनी मार्केटिंग का मौका भी नहीं गंवाया, जब उन्होंने कहा, दुनिया का हर देश भारत की ओर देख रहा है। मैं अपने छह महीने के कार्यकाल में 50 से अधिक विश्व नेताओं से मिल चुका है। सभी देश भारत के साथ का सहयोग चाहते हैं।

यानी एक तरह से उन्होंने खुद ही कह दिया कि इन तमाम कोशिशों से तुरंत निवेश की अपेक्षा लोग न पालें। सवाल यह है कि अगर बड़े पैमाने पर नविश नहीं आना है तो फिर क्या यह करोड़ों रुपये का सरकारी खर्चा सिर्फ भावनात्मक मेल-मिलाप का उपक्रम है या राजनीतिक पारी की दीर्घआयु सुनिश्चित करने का प्रयास।

 

 

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ओबामा की तरह भाषण देते नजर आए नरेंद्र मोदी

 

कुमार पंकज

गांधी नगर के महात्मा गांधी मंदिर के विशाल सभागार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अंग्रेजी में अपना लिखा हुआ भाषण शब्दशह पढ़ रहे थे हर कोई अचंभा में था। ऐसा लग रहा था कि मोदी अपने भाषण को कंठस्थ करके आए हैं। लेकिन हकीकत यह थी कि वह स्पील टेलि प्रोम्पटर के जरिए लोगों को संबोधित कर रहे थे। यह ऐसी तकनीकी है जिसका संभवत: पहली बार भारत में प्रयोग हो रहा था। इसका उपयोग अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा करते रहे हैं। इस डिवाइस में बहुत बारीक पारदर्शक कांच होता है जिसमें वक्ता लिखे हुए को आसानी से पढ़ सकते हैं। डिवाइस के नीचे अंग्रेजी में भाषण लिखा होता है। जिससे दो पारदर्शक कांचों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि नीचे वाले कांच में दिखाई दे रहे उल्टे अक्षर सीधे दिख सकें। देश में निवेश के लिए एक बेहतर प्लेटफॉर्म के रूप में विशेष पहचान बन चुके वाइब्रेंट गुजरात के भव्य कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र  के महासचिव बान की मून, अमरीका के विदेश मंत्री जॉन कैरी, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोब्गे, मेसोडेनिया के प्रधानमंत्री निकोला रुवस्की सहित सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों और भारतीय उद्योपतियों ने हिस्सा लिया। उद्योगपतियों ने जहां मोदी की तारीफ की वहीं गुजरात में निवेश की घोषणा भी की। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने भी ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे का गुणगान किया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा से ठीक पहले भारत आए जॉन कैरी की इस यात्रा को आर्थिक संबंध मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यंग किम ने भारत की विकास दर पर चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया के कई देश मुश्किलों का सामना कर रहे हैं उनके बीच भारत ने उम्मीद की रोशनी दिखाई है। उद्योगपति और विश्व के नेता जब प्रधानमंत्री की तारीफ कर रहे थे तो उनका चेहरा गंभीर था। इसी गंभीरता के साथ जब मोदी ने अपना भाषण शुरू किया तो थ्री डी पर फोकस किया। थी्र डी यानि डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डिमांड। मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि सरकार एक भरोसेमंद, पारदर्शी और निष्पक्ष पॉलिसी बनाने के लिए प्रतिबद्घ है। अपनी सरकार पर उठ रहे सवालों के जवाब में मोदी ने कहा कि मेरी सरकार सामाजिक ढांचे को बदलने की कोशिश में लगी है। इसके लिए ग्लोबल रिसोर्स को लेकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ घोषणाएं नहीं कर रहे हैं,उनपर काम भी कर रहे हैं। हम बदलाव के रास्ते पर चल रहे हैं। 2003 में पहली बार वाइब्रेंट गुजरात की शुरूआत हुई थी उस समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। उसके बाद कई राज्य इस तरह का आयोजन करने लगे।

 

 

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