भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप के अनुसार शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन से इतर शी से मुलाकात में मोदी ने कहा कि भारत के मामले में निर्णय उसके अपने गुणों को देखकर किया जाना चाहिए और चीन को सियोल सम्मेलन में उभर रही आम-सहमति में योगदान देना चाहिए। करीब 50 मिनट चली मुलाकात एनएसजी में भारत के प्रवेश पर चीन के कड़े विरोध की पृष्ठभूमि में हुई। यह समूह परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार और निर्यात समेत परमाणु क्षेत्र से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को देखता है। हालांकि चीन की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर स्वरूप ने टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, आप जानते हैं कि यह एक जटिल और नाजुक प्रक्रिया है। हम इंतजार कर रहे हैं कि सियोल से क्या खबर आती है। मैं इस पर और कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। स्वरूप ने यह भी कहा कि मोदी-शी की मुलाकात में अधिकतर समय एनएसजी के मुद्दे पर बात हुई।
जब पूछा गया कि क्या भारत ने एनएसजी की सदस्यता के भारत और पाकिस्तान के प्रयासों को अलग करके देखने की जरूरत पर जोर दिया तो उन्होंने कहा, आपने सुना कि प्रधानमंत्री ने शी जिनपिंग से कहा कि चीन को भारत के आवेदन का उसके अपने गुणों के आधार पर निष्पक्ष और उद्देश्यपरक मूल्यांकन करना चाहिए और चीन को सियोल में उभरती आम-सहमति में शामिल होना चाहिए। भारत और पाकिस्तान की सदस्यता के मुद्दे पर सकारात्मक भूमिका निभाने का दावा करते हुए चीन ने कहा था कि यह मामला पूर्ण सत्र के एजेंडा में नहीं है। हालांकि पीएम मोदी से पहले सम्मेलन में भाग लेने ताशकंद में मौजूद पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने शी से मुलाकात की और एनएसजी की सदस्यता के लिए पाकिस्तान के पक्ष का समर्थन करने पर चीन का शुक्रिया अदा किया। हुसैन ने शी से कहा कि एनएसजी की सदस्यता देने में किसी तरह की छूट दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता को अवरद्ध करेगी।
स्वरूप ने बताया, राष्ट्रपति शी ने एससीओ में भारत को शामिल किए जाने का स्वागत किया और कहा कि इससे यह मजबूत होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन में भारत की सदस्यता के लिए चीन के समर्थन पर राष्ट्रपति शी का आभार जताया। नई दिल्ली से ताशकंद रवाना होने से पहले मोदी ने कहा था कि भारत एससीओ सम्मेलन में अपनी सहभागिता से फलदायक परिणाम के प्रति आशान्वित है। एससीओ में पूर्ण रूपेण सदस्य के तौर पर भारत का प्रवेश उसे इसके सदस्य देशों के साथ रक्षा, सुरक्षा और आतंकवाद निरोधक कार्रवाई में विस्तृत सहयोग का अवसर प्रदान करेगा। एससीओ की स्थापना 2001 में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने शंघाई सम्मेलन में की थी। भारत, ईरान और पाकिस्तान को 2005 के अस्ताना सम्मेलन में पर्यवेक्षकों के तौर पर शामिल किया गया था।