अमेरिका के विदेश विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ, खासतौर पर मुस्लिमों पर हिंसक चरमपंथी हिंदू समूहों द्वारा भीड़ के हमले 2018 में भी जारी रहे। साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों, हाशिए के समुदायों और सरकार के आलोचकों पर भीड़ के हमलों पर कार्रवाई करने में विफल रही। हालांकि भारत ने इसे सिरे से खारिज किया है।
रिपोर्ट का शीर्षक है- भारत 2018 अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता, जिसमें कहा गया है कि सरकार कभी-कभी धार्मिक अल्पसंख्यकों, हाशिए के समुदायों और सरकार के आलोचकों पर भीड़ के हमलों पर कार्रवाई करने में विफल रही। रिपोर्ट में कहा गया, 'भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए। देश में कम से कम 24 राज्य में गो वध पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध हैं।'
रिपोर्ट में कहा गया है, 'प्रतिबंध ज्यादातर मुसलमानों और अन्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को प्रभावित करता है। 24 राज्यों में से अधिकांश में जहां गो वध पर प्रतिबंध है, दंड में छह महीने से दो साल तक कारावास और 1,000 से 10,000 रुपए का जुर्माना शामिल है।'
भारत में सांप्रदायिक घटनाओं में 9 फीसदी की वृद्धि
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ द्वारा जारी रिपोर्ट में गृह मंत्रालय के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि 2015 में 2017 तक भारत में सांप्रदायिक घटनाओं में 9 फीसदी की वृद्धि हुई है, 822 घटनाओं के साथ 111 मौतें हुई और 2017 में 2,384 घायल हुए।
कठुआ मामले का जिक्र
जम्मू-कश्मीर की 8 साल की मुस्लिम लड़की का अपहरण करने, बलात्कार और हत्या करने का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, 'धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में कानून प्रवर्तन कर्मियों पर शामिल होने के आरोप थे। 10 जनवरी को जम्मू और कश्मीर पुलिस ने अपहरण, सामूहिक बलात्कार और 8 साल की लड़की की हत्या के मामले में 4 पुलिस कर्मियों सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों ने कथित तौर पर पीड़िता का अपहरण किया, उसे पास के एक मंदिर में ले गए, और उसके खानाबदोश मुस्लिम समुदाय को बाहर निकालने के प्रयास में उसका बलात्कार किया और उसे मार डाला।'
भारत ने रिपोर्ट को किया खारिज
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि इसका कोई आधार नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत अपने धर्मनिरपेक्ष छवि और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने पर गर्व करता है और यहां सभी लोग सादगी से रहते हैं। उन्होंने कहा कि देश में सद्भाव और समावेशी सोच है और यहां के सभी नागरिकों को संवैधानिक तौर पर मूल अधिकार दिए गए हैं जिसमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं।
भाजपा ने रिपोर्ट को बताया पूर्वाग्रह से प्रेरित
भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ के प्रमुख अनिल बलूनी ने एक बयान में कहा, '2018 की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट मोदी सरकार और भाजपा के प्रति पूर्वाग्रह से प्रेरित है। इस रिपोर्ट की मूल अवधारणा कि यहां अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा के पीछे कोई षडयंत्र है, सरासर झूठ है।' उन्होंने कहा कि इसके विपरीत ऐसे ज्यादातर मामलों में स्थानीय विवादों और अपराधी तत्वों का हाथ होता है। जब कभी आवश्यकता हुई तो प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेताओं ने अल्पसंख्यकों तथा समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के विरूद्ध हुई हिंसा की कड़ी अलोचना की है।
भाजपा नेता ने कहा कि भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ें बहुत गहरी हैं । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और वे ऐसे विवादों का फैसला करने और दोषियों को सजा देने में पूर्णतया सक्षम है। दुर्भाग्यवश इन तथ्यों को इस रिपोर्ट में बिलकुल अनदेखा कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 'सबका साथ, सबका विकास' के सिद्धांत में विश्वास करती है। मोदी सरकार द्वारा आरंभ तथा कार्यान्वित की गई बड़ी बड़ी योजनाओं से समाज के हर जाति, धर्म और क्षेत्र के लोगों को लाभ हुआ है। बलूनी ने कहा कि भारत की जनता ने भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा एवं राजग के विकास एजेंडे में पूर्ण विश्वास जताया है।
एजेंसी इनपुट