अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी करने वाली अमेरिका की एजेंसी यूएससीआईआरएफ ने भारत में लागू हुए सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) को लेकर चिंता व्यक्त की है। एजेंसी ने कहा है कि इस कानून की वजह से देश के मुसलमानों के अधिकार का व्यापक तौर पर हनन हो सकता है। यूएसआईसीआरएफ के विशेषज्ञों का एक पैनल भारत सरकार की प्रतिक्रिया के लिए म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे और सीएए को लेकर सुनवाई करेगा।
बता दें, सीएए को लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन लगातार हो रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में हुई हिंसा में करीब 47 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल है।
'मौलिक मान्यता के अधिकार को छीनता है'
यूएसआईसीआरएफ के अध्यक्ष टोनी पर्किन्स ने गुरुवार को कहा कि व्यक्तियों को इस मौलिक मान्यता से इनकार करना न केवल उनके साथ अधिकार को छीनता है, बल्कि उन्हें शामिल होने की क्षमता से भी रोकता है। इसलिए राजनीतिक प्रक्रिया में भेदभाव और उत्पीड़न के निवारण के लिए कानूनी रास्ते का उपयोग किया जाए। इन्हीं बातों को देखते हुए कि एक राष्ट्रीयता का अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार बन जाता है और यह राजनीतिक और नागरिक अधिकारों के साथ आधार के रूप में काम करता है।
‘मुसलमानों में व्यापक असंतोष पैदा हो सकता’
सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का हवाला देते हुए यूएससीआईआरएफ के कमिश्नर अनुरीमा भार्गव ने कहा कि भारत सरकार द्वारा हाल ही में की गई कार्रवाई परेशान करने वाली है है। उन्होंने कहा, “इस बात की आशंका है कि सीएए, नेशनल पॉपुलेश रजिस्टर (एनपीआर) और एनआरसी के साथ मिलकर भारतीय मुसलमानों में व्यापक पैमाने पर असंतोष पैदा कर सकता है।” उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि यह कानून इन लोगों को लंबे समय तक हिरासत में रखने, निर्वासन और हिंसा को लेकर संवेदनशील बनाता है। हम पहले से ही इस प्रक्रिया को पूर्वोत्तर राज्य असम में में देख रहे हैं। सरकार के मुताबिक एनआरसी इस राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान करने का एक पैमाना है।
एमईए ने दी थी सफाई
वहीं विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रवीश कुमार ने पिछले महीने कहा था, “हमने दिल्ली में हुई हिंसा के बारे में यूएससीआईआरएफ और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के तथ्यों को देखा है। ये वास्तव में गलत और भ्रामक हैं। इससे इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के उद्देश्य सामने आता दिखाई दे रहा हैं।
गौरतलब है, पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा संसद से सीएए को पारित किया गया था। इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।