Advertisement

आवरण कथा/सरहदी मोर्चेः एक ढीठ तो दूसरा दबंग

हाल में भारत-पाकिस्तान छोटे संघर्ष में ही खतरनाक हद के करीब पहुंच गए थे, उसके कुछ दिन बाद पूर्व थल सेना...
आवरण कथा/सरहदी मोर्चेः एक ढीठ तो दूसरा दबंग

हाल में भारत-पाकिस्तान छोटे संघर्ष में ही खतरनाक हद के करीब पहुंच गए थे, उसके कुछ दिन बाद पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे ने बड़े मार्के की बात कही, जो वायरल हो गई। उन्होंने कहा, ‘‘युद्ध रोमांटिक नजारा नहीं, यह बॉलीवुड की फिल्म नहीं है। यह बेहद गंभीर मामला है।’’ वे सैन्य टकराव को लेकर बुने गए राष्ट्रीय उन्माद का जिक्र कर रहे थे, जो खासकर ऑनलाइन और कई मुख्यधारा के टेलीविजन न्यूज चैनलों पर परोसा जा रहा था। वे सरकार और सशस्त्र बलों से ‘पूरी तरह से’ युद्ध में कूद पड़ने और ‘पाकिस्तान को हमेशा के लिए खत्म कर देने’ का हांका लगा रहे थे। यह इस युद्ध उन्‍माद और गोलाबारी के बीच फंसे कश्मीर के लोगों के लिए बेहद डरावना था, जो एक बार फिर अपनी नाजुक शांति और खुशहाली के संकेत खोने को अभिशप्‍त हैं।

पाकिस्तान के भीतर नौ आतंकी शिविरों पर सटीक घातक हमले करने के भारत के फैसले के चार दिनों के भीतर संघर्ष विराम की घोषणा से बहुत-से लोग निराश और चकित हो गए। इस हास्यास्पद उन्माद के बीच, संतुलित और शांति के पैरोकार “युद्धोन्माद” के खिलाफ अभियान चलाते और सरकार से “तनाव कम करने” का आह्वान करते देखे गए। हाल के वर्षों में बेहद ध्रुवीकृत दुनिया और टकराव वाली भू-राजनीति को कोविड-19 के बाद से “बदलती विश्व व्यवस्था” कहा जा रहा था, जो 2025 में “नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” भी कही जाने लगी है। ऐसे में भारत की नई राष्ट्रीय चेतना समय की मांग में है।

दो मोर्चों पर चुनौती

युद्ध ऐसी असलियत है, जिसके आसार हमेशा बने रहने वाले हैं। हमारी बहुरंगी विविधतापूर्ण आबादी और संघीय-लोकतांत्रिक व्यवस्था कई परतों में लिपटी और फैली हुई है, ‍इसलिए समूचे देश में एक नजरिया, एक भावना या देशभक्ति का जोश विरले ही जगता है। 1999 के करगिल संघर्ष के दौरान टीवी पर और आज के सोशल मीडिया नजारे से बहुत पहले, अधेड़ उम्र के लोग पाकिस्तान की घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब देते देश को देख चुके हैं। 1999 में फिर 2008 के मुंबई हमलों के वक्‍त देश विश्‍वासघात देख चुका है, जबकि हमारी सरकारों ने दोस्‍ती का हाथ बढ़ाया था।

दोकलाम में झड़प

फिर 2014 में भी नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलावा भेजकर दोस्‍ती का हाथ ही बढ़ाया था। 2015 में, मोदी ने लाहौर का दौरा भी किया। 2016 में, पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों ने कश्मीर के उड़ी में सेना के शिविर पर हमला किया, जिसमें 19 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई। उधर, 2017 में, ऑपरेशन जुनिपर के जरिए चीन (भूटान के डोकलाम में) के साथ झड़प होती है और फिर 2020 में, गलवान घाटी में बड़ी झड़प होती है। इस तरह दो मोर्चों पर भारत को चुनौती मिल रही है।

जैसा कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हाल में एक इंटरव्‍यू में कहा, ‘‘भारत यथास्थितिवादी देश है और उसका जोर विकास, प्रौद्योगिकी और राष्ट्र-निर्माण के जरिए अपने लोगों की प्रगति पर है। लेकिन, पाकिस्तान रिविजनिस्‍ट या संशोधनवादी देश है और वह ‘हजार टुकड़े’ करके तबाही बरपाने की अपनी पुरानी रणनीति से भारत में मुश्किल पैदा करना चाहता है, जिसका मकसद हमारे सबसे उत्तरी राज्य पर कब्जा करना है।’’ इस मायने में चीन दुनिया का सबसे बड़े संशोधनवादी देश है। वह न केवल अमेरिका के निर्विवाद वैश्विक महाशक्ति के एकाधिकार में रुकावट पैदा कर रहा है, बल्कि एशिया में इकलौती प्रमुख शक्ति बनना चाहता है और पड़ोसी भारत के साथ टकराव चाहता है। सामरिक मामलों के विशेषज्ञों ने लंबे समय से इसे भारत की दो-मोर्चे की सुरक्षा चुनौती के रूप में पहचाना है। यह नई दिल्ली में सुरक्षा और विदेश नीति के अलंबरदारों के लिए बड़ी चुनौती है।

पुराने दाग, नए युद्ध सिद्धांत

सामरिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को पाकिस्तान (और चीन) के साथ बातचीत के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल जारी है। पाकिस्‍तान को नक्‍शे से मिटा देने का ख्‍वाब पालने वाले अंध राष्ट्रवादियों के विपरीत, इन विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्‍तान में स्थिरता और खुशहाली आती है, तो उसके नापाक मंसूबे घटेंगे और विस्तारवादी लालच और असुरक्षा बोध से उसे छुटकारा मिलेगा और यही भारत के हक में है।

हालांकि, अप्रैल 2025 में, पाकिस्तानी फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का एक तीखा हिंदू-विरोधी/मुस्लिम समर्थक भाषण आया, जिसमें भारत के लोकतांत्रिक और बहुलवादी विचार को निशाना बनाया गया। वे केवल भारत में नाजुक हिंदू-मुस्लिम संबंधों में कलह पैदा करने की कोशिश कर रहे थे, बल्कि अपने देश में नाराजगी से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे थे। कुछ दिनों बाद, पहलगाम में आतंकवादी गुट द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने 26 सैलानियों की हत्‍या कर दी, जिसमें एक नेपाली नागरिक भी था। टीआरएफ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा की शाखा मानी जाती है।

यकीनन, भारत इसे अनदेखा नहीं कर सकता था। सो, पहले सिंधु जल संधि को ‘स्थगित’ करने जैसे कूटनीतिक उपायों के साथ जवाब दिया गया। फिर, ऑपरेशन सिंदूर के तहत सैन्‍य कार्रवाई की गई और जिसमें नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। बाद में 11 पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाने वाले सटीक हमले भी किए गए। इसका संदेश स्‍पष्‍ट था। इसके जरिए अपने ताकतवर पूर्वी पड़ोसी चीन को भी संदेश गया, जो पाकिस्तान को उच्च श्रेणी के हथियार उपलब्ध करा रहा है और लद्दाख में तनाव पैदा कर रहा है।

सोपोर में ड्रोन हमला  

इस मिशन में भारत को अपने सभी 1.4 अरब लागों को साथ लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति मजबूत धारणा का निर्माण करना चाहिए। राजनैतिक विचारधारा, धार्मिक विश्वासों और सामाजिक-आर्थिक फर्क को अलग रखना होगा। रूसी राजनैतिक सिद्धांतकार, लियोन ट्रॉट्स्की की य‍ह उक्ति कि ‘‘आप भले युद्ध में दिलचस्‍पी न लें, लेकिन युद्ध आपमें दिलचस्‍पी रखता है,’’ भारतीय संदर्भ में पहले कभी इस कदर सही नहीं साबित हुई थी।

शुरुआती संकेत इस जरूरत के बारे में बढ़ती जागरूकता का संकेत देते हैं। देश के संसदीय विपक्ष ने केंद्र सरकार को अमेरिकी राष्ट्रपति की दखलंदाजी और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कथित ‘व्यापार सौदे’ की महत्वहीनता के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाने में मदद की। सरकार ने दुनिया के 33 देशों में अपनी बात पहुंचाने के लिए “सर्वदलीय” प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया, जिसमें प्रतिष्ठित भारतीय संसद सदस्य और प्रतिष्ठित पूर्व राजनयिक शामिल रहे हैं। यह प्रतिनिधिमंडल आतंकवाद के खिलाफ भारत का रणनीतिक संदेश लेकर गया, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अपनी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दोहराया।

तो, भारत का एक तरफ ढीठ देश पाकिस्‍तान से सामना है, तो दूसरी तरफ अपनी दबंगई दिखाने वाले देश चीन से मुकाबला है। इसके लिए हमें लंबी तैयारी के साथ लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए।

(लेखक वर्तमान में डिजिटल प्रौद्योगिकी, वैश्विक मामलों और लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं पर काम करते हैं। विचार निजी हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad