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धर्मः नए युग के पुल

मई 2025 में विश्व की निगाहें वेटिकन सिटी पर टिकी थीं, सेंट पीटर स्क्वायर में सांसें थमी हुई थीं। सिस्टीन...
धर्मः नए युग के पुल

मई 2025 में विश्व की निगाहें वेटिकन सिटी पर टिकी थीं, सेंट पीटर स्क्वायर में सांसें थमी हुई थीं। सिस्टीन चैपल की चिमनी से उठने वाला धुआं हर दिल की धड़कन बढ़ा रहा था। तीन चरणों के मतदान के बाद भी पोप का चुनाव नहीं हो पा रहा था। दुनिया भर से 133 कार्डिनल नए पोप के चयन में जुटे थे। आखिरकार, 8 मई को सफेद धुआं उठा और हेबेमस पापम (हमारे पास एक पोप है) की घोषणा के साथ 69 साल के रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट, पोप चुन लिए गए। उनका नया नाम पोप लियो-14 होगा। दो-तिहाई बहुमत (89 वोट) से उन्हें पोप चुना गया। 1900 के बाद से यह पांचवां मौका है जब नए पोप को दो दिनों में चुन लिया गया। वे पहले अमेरिकी कार्डिनल हैं, जो इस पवित्र आसन पर बैठे। 14 सितंबर 1955 को अमेरिका के इलिनोय में जन्मे रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को पोप फ्रांसिस का बहुत करीबी माना जाता है।  

पोप फ्रांसिस का 21 अप्रैल 2025 को 88 साल की उम्र में निमोनिया से निधन हो गया था। वेटिकन में सीडे वेकेंटे (लैटिन भाषा का शब्द) यानी खाली आसन की घोषणा की। नया पोप चुनने की प्रकिया गोपनीय होती है। नियम बड़े सख्त होते हैं, जिसमें चुनाव स्थल पर जैमर लगा दिए जाते हैं ताकि बाहर से किसी तरह का संपर्क न हो। चुनाव से पहले सभी कार्डिनल शपथ लेते हैं कि वे चुनाव प्रकिया की कोई बात बाहर नहीं बताएंगे। प्रत्येक कार्डिनल एक मतपत्र पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार का नाम लिखता है। उसके ऊपर लैटिन भाषा में, ‘‘मैं सर्वोच्च पोंटिफ चुनता हूं’’ लिखा रहता है। जीत के लिए दो-तिहाई मत जरूरी होता है।

इस साल कॉन्क्लेव को नए पोप के चुनाव के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि तीन चरणों तक किसी उम्मीदवार को जरूरी बहुमत हासिल नहीं हो पा रहा था। पहले दिन निकले काले धुएं ने सेंट पीटर स्क्वायर पर जमा भीड़ को निराश किया। हर दौर के बाद मतपत्र जला दिए जाते हैं और काला धुआं संकेत होता है कि चुनाव अभी नहीं हो पाया है। आखिरकार चौथे दौर में 8 मई को सफेद धुआं सबके लिए आश्वस्ति लेकर आया।

चुनाव के बाद, प्रीवोस्ट से पूछा गया, “क्या आप चुनाव स्वीकार करते हैं? उनकी सहमति के बाद उनका नया नामकरण लियो 14 कर दिया गया, जो साहस और नेतृत्व का प्रतीक है। उसके बाद रूम ऑफ टीयर्स में श्वेत वस्त्र धारण करने के बाद उन्होंने सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से अपना पहला आशीर्वचन संबोधन किया। उन्होंने कहा कि सभी को एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सहिष्णु रहना चाहिए। यह क्षण न केवल कैथोलिक अनुयायियों, बल्कि वैश्विक मंच के लिए ऐतिहासिक क्षण था।

विचारधारा और क्षेत्रीयता

कॉन्क्लेव केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक राजनैतिक मंच भी है। अब तक 266 पोप में से 200 इटली के रहे हैं। इस पद पर यूरोपीय- विशेषकर इतालवी दबदबा रहा है। लेकिन हाल के दशकों में गैर-यूरोपीय पोप, जैसे अर्जेंटीना के फ्रांसिस ने इस परंपरा को चुनौती दी। 2025 में चर्च की प्रगतिशील और रूढ़िवादी धड़ों के बीच टकराव चरम पर था।

पोप फ्रांसिस के कार्यकाल में सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रति उदारता को बढ़ावा मिला था। इस कदम ने चर्च को दो हिस्सों में बांट दिया था। लैटिन अमेरिका और यूरोप के कुछ कार्डिनल इन सुधारों को आगे बढ़ाना चाहते थे, जबकि अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका के रूढ़िवादी कार्डिनल समलैंगिक विवाह के विरोध में थे। वे पारंपरिक सिद्धांतों पर अड़े थे। इस विभाजन ने कॉन्क्लेव को जटिल बना दिया।

इस बार 133 कार्डिनल में यूरोप के 52 कार्डिनल्स का वजन भारी था, लेकिन उनके मुकाबले एशिया (23), अफ्रीका (17) और लैटिन अमेरिका (21) के कार्डिनल ने गैर-यूरोपीय दृष्टिकोण को मजबूती दी। चर्चा में दो प्रमुख उम्मीदवार उभरे- इतालवी कार्डिनल, जो रूढ़िवादी और यूरोपीय हितों के प्रतीक हैं और दूसरे फिलीपीनी कार्डिनल- लुइस टैगल, जो एशिया के उभरते प्रभाव और प्रगतिशील दृष्टिकोण का चेहरा थे। टैगल की लोकप्रियता, विशेषकर उनकी करिश्माई उपस्थिति और सामाजिक कार्यों के कारण, उन्हें मजबूत दावेदार माना जा रहा था। इतालवी कार्डिनल परंपरावादियों के पसंद थे।

इन दो ध्रुवों के बीच, रॉबर्ट प्रीवोस्ट का उदय अप्रत्याशित है। उत्तरी अमेरिका के 16 कार्डिनल ने उनके कूटनीतिक अनुभव और उदारवादी रुख का समर्थन किया। अनौपचारिक बैठकों और बातचीत में, जहां खुले प्रचार की मनाही रहती है, प्रीवोस्ट का नाम धीरे-धीरे मजबूत हुआ। उनकी पश्चिम और पूर्वी एशिया में वेटिकन राजनयिक के रूप में भूमिका ने उन्हें वैश्विक मुद्दों, जैसे जलवायु परिवर्तन, गरीबी और यौन शोषण के मामलों पर संतुलित दृष्टिकोण के लिए अलग पहचान दिलाई। तीन असफल दौर के बाद, प्रीवोस्ट ने चौथे दौर में दो-तिहाई वोट हासिल किए, जो प्रगतिशील और रूढ़िवादी धड़ों के बीच समझौते का परिणाम था।

अमेरिकी पोप का उदय

रॉबर्ट प्रीवोस्ट, अब पोप लियो 14, शिकागो में जन्मे कार्डिनल हैं, जिनका जीवन धर्म और कूटनीति का संगम है। उन्होंने वेटिकन के राजनयिक कोर में दशकों तक सेवा की। पश्चिम एशिया में शांति वार्ताओं और वेटिकन-चीन समझौते में उनकी भूमिका ने उन्हें वैश्विक पहचान दी। 2016 में कार्डिनल बनने के बाद, उन्होंने सामाजिक न्याय और अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा दिया।

लियो 14 का दृष्टिकोण उदारवादी है, जो प्रगतिशील और रूढ़िवादी विचारों को संतुलित करता है। वे गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मुखर रहते हैं। वे चर्च में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने के पक्षधर होने के बावजूद, महिला पुरोहिती से कतराते हैं। वे एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रति उदार हैं लेकिन समलैंगिक जोड़े को आशीर्वाद देने के हिमायती नहीं हैं। ब्रह्मचर्य और गर्भपात जैसे मुद्दों पर उनका रुख पारंपरिक है।

अमेरिकी पोप का आना न केवल उत्तरी अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि चर्च की नई वैश्विक प्रकृति को भी रेखांकित करता है। प्रीवोस्ट का चयन इतालवी और फिलीपीनी उम्मीदवारों के बीच गतिरोध का परिणाम था। इतालवी कार्डिनल ने यूरोपीय वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश की और टैगल ने एशिया के उभरते महत्व को दर्शाया, प्रीवोस्ट ने दोनों पक्षों को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में काम किया। उनका कूटनीतिक अनुभव और अपेक्षाकृत उदार नजरिया इसमें काम आया।

वैश्विक संदर्भ

पोप की वैश्विक मंच पर भी प्रभावी भूमिका होती है। वेटिकन सिटी, स्वतंत्र राष्ट्र की तरह काम करता है और पोप उसके शासक होते हैं। वे विश्व के नेताओं के साथ मुलाकात करते हैं और शांति, मानवाधिकार, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर प्रभाव डालते हैं। लियो 14 की कूटनीतिक पृष्ठभूमि उन्हें इस भूमिका में असाधारण बनाती है। उनके सामने कई चुनौतियां हैं। पहली, चर्च का आंतरिक विभाजन रोकना। प्रगतिशील और रूढ़िवादी धड़ों के बीच संतुलन बनाना उनकी सबसे बड़ी परीक्षा होगी। दूसरी चुनौती है, यौन शोषण के मामले, जिन्होंने चर्च की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाई है।

लोगों का मानना है कि लियो 14 का उदारवादी दृष्टिकोण सामाजिक न्याय और पर्यावरण पर नई पहल शुरू कर सकता है। वेटिकन-चीन समझौता, जो कैथोलिक बिशपों की नियुक्ति को लेकर है, एक नाजुक कूटनीतिक चुनौती है। प्रीवोस्ट का अनुभव उन्हें इस समझौते को मजबूत करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, पश्चिम एशिया में शांति प्रयासों और इस्लाम और यहूदी धर्म के साथ संवाद को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता हो सकता है।

परंपरा प्राचीन, अध्याय नया

पोप का पद सेंट पीटर से शुरू हुआ, जिन्हें यीशु ने ‘चट्टान’ कहा था। मध्य युग में पोप ने यूरोप की राजनीति को आकार दिया। पोप ग्रेगरी प्रथम ने ईसाई धर्म का प्रसार किया, जॉन पॉल द्वितीय ने साम्यवाद के पतन में भूमिका निभाई और फ्रांसिस पर्यावरण और सामाजिक समावेश के मुद्दे को केंद्र में लाए। लियो 14 इसी यशस्वी विरासत के वाहक हैं। उम्मीद है कि लियो 14 धर्म, न्याय, और शासन को संतुलित कर एक आदर्श स्‍थापित करेंगे। सेंट पीटर स्क्वायर में उमड़ा जनसैलाब और विश्व भर में स्क्रीन पर टकटकी लगाए लोग इस बात के गवाह हैं कि यह क्षण एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का है। लियो 14 का सफर शुरू हो चुका है और विश्व उनकी ओर देख रहा है।

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