24 अप्रैल को दोपहर 11.41 पर आए भूकंप के कुछ ही मिनटों के भीतर धरती हिलने से एवरेस्ट के बेस कैंप और खुशबू फॉल के बीच के इलाके में जबरदस्त हिमस्खलन हुआ। बेस कैंप में मौजूद पर्वतारोही, शेरपा, गाइड व उनके सहयोगी टीमें कुछ समझ पाते इससे पहले ही बर्फ के विशालकाय गोले ने कैंप के एक हिस्से को मटियामेट कर दिया। अब तक की जानकारी के अनुसार 22 पर्वतारोहियों की जान जा चुकी है। हालांकि इस संख्या के बढऩे का अंदेशा है क्योंकि कई पर्वतारोही अभी लापता हैं। हिमस्खलन की चपेट में बेस कैंप के ऊपर एवरेस्ट के रास्ते के कैंप 1 और कैंप 2 भी आए थे। बर्फ के उस सागर में दबे-फंसे लोगों को ढूंढ़ निकालना और बचाना आसान काम नहीं।
ठीक एक साल पहले 18 अप्रैल को 2014 को जबरदस्त हिमस्खलन हुआ था जिसमें एवरेस्ट की चढ़ाई में पर्वतारोहियों को मदद देने के लिए रस्सियां लगाने गए 16 शेरपा मारे गए थे। उस समय 6,400 मीटर (21,000 फुट) की ऊंचाई पर ठीक कैंप 2 के नीचे यह हादसा हुआ था। उस घटना और उसके बाद शेरपाओं की हड़ताल के चलते पिछले साल एवरेस्ट की चढ़ाई का आधे से ज्यादा सीजन बेकार हो गया था। इस बार की मार गहरी है। बर्फ में दफन हो चुके बेस कैंप को फिर से खड़ा करना चुनौतीपूर्ण है। इतना ही नहीं, काठमांडू और आसपास के इलाके भी मलबे में तब्दील हैं। दुनियाभर के पर्वतारोहियों के लिए नेपाल आने-जाने का बिंदु काठमांडू ही है। विदेशियों की पसंद के कई होटल ध्वस्त हो चुके हैं। फिर भूकंप के बाद आफ्टर शॉक का खतरा चढ़ाई को लेकर लगातार जोखिम बनाए रखेगा।
अभी तो यह भी पता नहीं चल पाया है कि एवरेस्ट पर जान-माल का कितना नुकसान हुआ है। कई पर्वतारोही किस्मत से बच भी गए क्योंकि वे हिमस्खलन के रास्ते में नहीं आए। इनमें भारतीय सेना के अभियान दल समेत कई भारतीय पर्वतारोही भी थे। बचे पर्वतारोहियों ने घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया के जरिये अपनी खोज-खबर और आपदा के बारे में बाहरी दुनिया को बताना शुरू कर दिया था। हर साल सैकड़ों पर्वतारोही, उनके गाइड व सहयोगी टीम के सदस्य 8850 मीटर ऊंचे एवरेस्ट शिखर पर चढ़ाई के लिए बेस कैंप में जुटते हैं। वास्तविक चढ़ाई शुरू होने से पहले काफी समय रस्सियां लगाने और ऊपर के कैंप स्थापित करने में लग जाता है। अनुकूल मौसम के कारण अप्रैल-मई का समय ही इस कोशिश के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। विडंबना देखिए कि इसी समय एवरेस्ट की सबसे बड़ी त्रासदियां घटी हैं। पिछले साल की घटना से पहले 1996 में भी 11 मई को एक बर्फीले तूफान में आठ पर्वतारोही मारे गए थे। 1953 में पहली बार एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे के एवरेस्ट के शिखर पर चढऩे के बाद से 4000 से ज्यादा पर्वतारोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को छू पाने में कामयाब रहे हैं। हालांकि इस कोशिश में सैकड़ों ने अपनी जानें गंवाई हैं।