सरकारी ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया कि एनएसजी में भारत का प्रवेश दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन को हिला देगा और साथ ही इससे पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्रा में शांति एवं स्थिरता पर (संकट के) बादल भी मंडराने लगेंगे। हालांकि इस लेख में यह भी कहा गया कि चीन 48 सदस्यों वाले परमाणु क्लब में भारत को शामिल किए जाने का स्वागत कर सकता है बशर्ते यह नियमों के साथ हो।
सरकारी थिंक टैंक चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेंपररी इंटरनेशनल रिलेशन्स के रिसर्च फेलो फू शियाओकियांग द्वारा लिखे गए इस लेख के जरिए एनएसजी में भारत के प्रवेश के प्रति चीन के कड़े एवं मुखर विरोध को रेखांकित किया गया। इसके साथ ही चीन की इस चिंता को भी उठाया गया कि भारत को सदस्यता मिल जाने पर चीन का सर्वकालिक सहयोगी पाकिस्तान पीछे छूट जाएगा क्योंकि एनएसजी में प्रवेश मिलने से भारत एक वैध परमाणु शक्ति बन जाएगा।
भारत द्वारा पहली बार मेक्सिको और स्विट्जरलैंड का समर्थन जुटा लिए जाने का जिक्र करते हुए लेख में कहा गया, इस माह की शुरुआत में विशिष्ट परमाणु क्लब में शामिल होने के प्रयास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अमेरिका, स्विट्जरलैंड अैर मेक्सिको का समर्थन जुटा लेने के बाद ऐसा लगता है कि भारत एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। लेख में कहा गया है, दुनियाभर में असैन्य परमाणु व्यापार का संचालन करने वाले ब्लॉक एनएसजी का सदस्य बनने से भारत को एक वैध परमाणु शक्ति के रूप में वैश्विक स्वीकार्यता मिल जाएगी।
इसी अखबार में 14 जून को छपी एक समीक्षा में कहा गया कि एनएसजी में भारत का प्रवेश चीन के राष्ट्रीय हित को खतरे में डाल सकता है और यह पाकिस्तान की एक कमजोर नस को छू सकता है। ग्लोबल टाइम्स के लेख में कहा गया, यदि भारत इस समूह से जुड़ता है तो वह असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधनों को अंतरराष्ट्रीय बाजार से ज्यादा आराम से आयात कर सकेगा और अपनी घरेलू परमाणु सामग्री को वह सैन्य इस्तेमाल के लिए बचा लेगा।
सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के प्रकाशन समूह से जुड़े टेबलॉयड पेपर ग्लोबल टाइम्स ने कहा, एनएसजी की सदस्यता से जुड़ी भारत की महत्वाकांक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य परमाणु क्षमताओं में इस्लामाबाद पर बढ़त हासिल करना है। यदि नई दिल्ली को पहले सदस्यता मिल जाती है तो भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु संतुलन टूट जाएगा।