Advertisement

भूकंप ने बदल दी सियासत

काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने के बाद जब वहां के स्थानीय समाचार पत्रों पर नजर दौड़ाई तो पाया कि भूकंप की त्रासदी की चर्चा कम, संविधान की चर्चा ज्यादा है। हवाई अड्डे से बाहर निकलने के बाद बातचीत के क्रम में जब लोगों से जानना चाहा कि अब भूकंप के बाद क्या‍ स्थिति है तो लोग भूकंप की बजाय देश के संविधान पर बात ज्यादा कर रहे थे। स्थानीय लोगों के मुताबिक अगर भूकंप नहीं आता तो शायद राजनीतिक दल संविधान को लेकर इतनी जल्दी सक्रिय नहीं होते।
भूकंप ने बदल दी सियासत

 पच्चीस अप्रैल 2015 को आए भीषण भूकंप से नेपाल में तबाही को लेकर जिस मंजर के बारे में पढ़ा और सुना था। तबाही के दो महीने बाद काठमांडू पहुुंचने पर वैसा मंजर नजर नहींं आया है। काठमांडू घाटी में लोग सामान्य दिनों की तरह अपने काम में व्यस्त नजर आ रहे थे। सडक़ों पर यातायात आम दिनों की तरह ही था। होटल पहुंचने के रास्ते में भूकंप से क्षतिग्रस्त कुछ इमारतों में दरार तो कुछ का मलबा जरुर नजर आ रहा था। कुछ जगहों पर टेंट भी नजर आए जिनके बारे में बताया गया कि इन टेंटों में विस्थापित लोग रह रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि काठमांडू घाटी में कम घाटी के बाहरी इलाकों में ज्यादा तबाही हुई है। उस तबाही के कारण ही लोगों ने काठमांडू में आकर शरण ली। कारण पूछने पर लोगों ने बताया कि भूकंप के बाद जो राहत कार्य का सिलसिला शुरू हुआ उसका केंद्र काठमांडू था।

आसपास के इलाकों के तबाह हुए घरों के लोगों ने भी शहर में ही पनाह लेने के बारे में सोचा। काठमांडू का सबसे बड़ा मैदान जहां राजनीति रैलियां होती है वह भी शरणार्थी शिविर में तद्ब्रदील हो चुका था। कई मुल्कों से राहत के लिए सामग्री और धन नेपाल को मिलने लगा। लेकिन इस आपदा के बीच संविधान निर्माण को लेकर जो तेजी आई उसने यहां के लोगों के चेहरे पर रौनकता ला दी। लोगों का मानना था कि संविधान बन जाने से उन्हें उनका अधिकार मिल जाएगा। जिस तरह से भारत में लोकतंत्र स्थापित है वैसा ही लोकतंत्र नेपाल में हो जाएगा। लोग स्वेच्छा से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। गाइड का काम करने वाले यादव खती ओड़ा ने बताया कि अगर भूकंप नहीं आया होता तो राजनीतिक दल संविधान बनाने के बारे में नहीं सोचते। यादव के मुताबिक भले ही हमारे देश को गहरा जख्म‍ लगा है लेकिन इस जख्म‍ ने सियासी दलों को सुधार दिया है। 

करीब तीन करोड़ की आबादी वाले इस देश की संसद में 601 सदस्य हैं। नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, यूसीपीएन (माओवादी) और मधेसी पीपुल्स राइट फोरम-डेमोक्रेटिक (एफपीआरएफ-डी) के सदस्यों की संख्या‍ पांच सौ से ऊपर है। नेपाल की सियासत का एक रंग यह भी है कि इस छोटे से देश में करीब 80 राजनीतिक दल हैं जिनमें 30 दलों का राजनीतिक अस्तित्व किसी न किसी रूप में है। कई दलों के तो एक-एक प्रतिनिधि ही नेपाल की संसद में पहुंचे हैं। संविधान का मसौदा तैयार है और यहां के सियासी दलों को उम्मी‍द है कि जुलाई के अंतिम सप्ताह तक यह लागू हो जाएगा। नए संविधान के मुताबिक नेपाल में संसदीय प्रणाली और आठ प्रांत होंगे। संविधान लागू हो जाने पर नेपाल संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष, समावेशी और विविध जातीय देश बन जाएगा। जबकि अभी तक यह संवैधानिक रूप से घोषित एकमात्र हिंदू राष्ट्र था।

संविधान के मसौदे में शासन की संसदीय प्रणाली अपनाने का प्रावधान है, जिसमें कार्यकारी शक्तियां संसद के जरिये बहुमत से चुने गए प्रधानमंत्री में निहित होंगी। राजनीतिक पार्टियां संसद और राज्य विधानमंडलों में मिश्रित निर्वाचन प्रणाली अपनाने को राजी हुई हैं। इसके तहत 60 फीसदी सदस्य प्रत्यक्ष मतदान से और 40 फीसदी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए चुने जाएंगे। संसद में 275 सदस्य होंगे जिनमें 165 प्रत्यक्ष मतदान से और शेष 110 आनुपातिक प्रतिनिधत्व मतदान प्रणाली से चुने जाएंगे। नए संविधान के तहत नेपाल बहुलवादी और बहुदलीय सिद्धांत पर आधारित लोकतंत्र होगा और इस प्रावधान को बदलने के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं किया जा सकेगा। अन्य सामान्य प्रावधानों में संशोधन दो तिहाई वोट से हो सकेगा। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के साथ धर्मनिरपेक्षता को अपनाया गया है। राष्ट्रपति के चुनाव के निर्वाचक मंडल में संघीय संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य होंगे। संसद दो सदनों वाली होगी जबकि राज्य में एक ही सदन होगा।


वर्तमान में नेपाली कांग्रेस के नेता सुशील कोइराला प्रधानमंत्री हैं और गठबंधन की सरकार में सीपीएन-यूएमएल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है जो सरकार में शामिल है। फरवरी 2014 में जब कोइराला प्रधानमंत्री बने थे तब इस बात पर सहमति बनी थी कि संविधान निर्माण का काम पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री का पद सीपीएन-यूएमएल को दे दिया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी ओली देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे। आउटलुक से बातचीत में ओली कहते हैं कि पहले संविधान तैयार हो जाए उसके बाद तय किया जाएगा कि किसको क्या‍ पद मिलेगा। ओली सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर कोई चर्चा नहीं करते लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि उनकी पहली प्राथमिकता संविधान को लागू कराने की है। दूसरी ओर नेपाल की मुख्य‍ विपक्षी पार्टी यूसीपीए (माओवादी) ने संविधान के नए मसौदे के प्रावधानों को लोगों की भावना के खिलाफ बताते हुए इस पर हस्ताक्षर नहीं करने की चेतावनी दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अग्नि प्रसाद सपकोटा कहते हैं कि नागरिकता के प्रावधान में केंद्र, प्रांतों और स्थानीय प्रशासनिक संस्थाओं के साथ 'जिला’ शब्द‍ भी जोड़ा गया है जो 16 सूत्री समझौते के खिलाफ है।

संविधान के बारे में नेपाल की सियासत से जुड़े कुछ प्रमुख नेताओं ने बताया कि दरअसल भूकंप के बाद नेपाल की सबसे बड़ी मजबूरी हो गई संविधान का निर्माण। क्यों‍कि आपदा से पीडि़त लोगों की मदद के लिए जो विदेशी फंड मिलना है वह बिना कानून के नहीं मिल सकता। जब तक संविधान नहीं बनेगा तब तक कानून की बात करना भी बेमानी है। ऐसे में सियासी दलों की मजबूरी है कि संविधान को जल्द से जल्द लागू करवाएं। सियासत जो भी हो लेकिन नेपाल के लोगों की उम्मी‍द जगी है कि संविधान लागू होते ही विकास की रक्रतार तेज पकड़ेगी क्यों‍कि अभी भी देश के कई नियम कानून ऐसे हैं जिनसे आम लोगों को कोई फायदा नहीं होता।

एक लाख 40 हजार 181 स्‍क्वायर किलोमीटर में फैले नेपाल की भौगोलिक स्थिति यह है कि यहां का 68 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है जबकि 15 फीसदी हिल और 17 फीसदी तराई इलाका है। नेपाल की आय का स्रोत पर्यटन है जो कि भूकंप के बाद बुरी तरह से तबाह हो चुका है। काठमांडू सहित पूरे नेपाल के जो पर्यटन स्थल है वहां जाने से विदेशी लोग कतराने लगे हैं। लोगों के मन में ऐसा डर समा गया है कि पूरा नेपाल तबाह हो चुका है जबकि 75 जिलों में केवल 14 जिले ऐसे हैं जहां तबाही हुई है। बाकी पर्यटन स्थल पोखरा, चितवन, लुंबिनी आदि जगहों पर किसी प्रकार भूकंप का असर नहीं देखा गया। नेपाल पर्यटन बोर्ड के उप महानिदेशक रमेश कुमार अधिकारी बताते हैं कि दरअसल मीडिया में जो खबरें आई उसके बाद ऐसा लगा कि पूरा नेपाल ही तबाह हो गया है। जबकि काठमांडू के कुछ ऐतिहासिक स्थलों को छोड़ दें तो नेपाल के सभी प्रमुख पर्यटन स्थल सुरिक्षत हैं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad