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विदेश सचिव स्तर वार्ता: भारत ने कहा, गेंद पाकिस्तान के पाले में है

भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता के बारे में भारत ने बुधवार को कहा कि गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है। भारत ने जोर देकर कहा कि इस्लामाबाद को ही सीमापार से जारी आतंकवाद, जम्मू कश्मीर के हिस्से पर अवैध कब्जे और आतंकी शिविरों को बंद करने पर निर्णय लेना है।
विदेश सचिव स्तर वार्ता: भारत ने कहा, गेंद पाकिस्तान के पाले में है

अपने पाकिस्तानी समकक्ष एजाज अहमद चौधरी की कश्मीर पर बातचीत की पेशकश के जवाब में विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि चर्चा जम्मू कश्मीर में आतंकी गतिविधियों और घाटी में हिंसा और आतंकवाद को उकसावा देना बंद करने पर केंद्रित होनी चाहिए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि जयशंकर ने यह बताया कि वह अपने समकक्ष का इस्लामाबाद आने का न्यौता स्वीकार करते हैं लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि चर्चा सबसे पहले उनकी ओर से जम्मू कश्मीर के बारे में उठाए गए विषयों पर होनी चाहिए। स्वरूप ने बताया,  16 अगस्त को लिखे पत्र में विदेश सचिव ने कहा कि सबसे पहले पाकिस्तान के स्वपोषित आरोपों को भारत सरकार पूरी तरह से खारिज करती है। पाकिस्तान का जम्मू कश्मीर में कोई अधिकार नहीं है और यह भारत का अभिन्न हिस्सा है।

जयशंकर ने अपने पत्र में कहा कि चर्चा पाकिस्तान में आतंकवादियों को पनाह देने, पनाहगाह प्रदान करने और उन आतंकवादियों को समर्थन देने से इंकार के विषय पर होनी चाहिए जो भारतीय कानून से भागे हुए हैं। स्वरूप ने कहा,  गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है। उन्होंने कोई पेशकश की है, हमने उस पेशकश पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अब यह उनके ऊपर निर्भर करता है कि इसे आगे बढ़ाएं। उन्होंने यह भी कहा कि जवाब में यह भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नामित पाकिस्तानी आतंकवादी नेताओं को हिरासत में लेने और अभियोग चलाने का विषय चर्चा का हिस्सा होना चाहिए और इसके साथ आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविरों को बंद करने पर भी चर्चा हो। अपने पत्र में विदेश सचिव ने मुंबई और पठानकोट हवाई अड्डे के दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने के महत्व को रेखांकित किया जो पाकिस्तान में है। स्वरूप ने कहा कि पूरी दुनिया को पता है कि पाकिस्तान का भारत के खिलाफ हिंसा और आतंकवाद का लंबा इतिहास रहा है। दोनों देशों के बीच बातचीत 1972 के शिमला समझौता और फरवरी 1999 की लाहौर घोषणा के दायरे में होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर विशेष रूप से उसके निशाने पर रहा है। यह रिकार्ड 1947 में जम्मू कश्मीर में सशस्त्र हमलावर भेजने और फिर 1965 में इसे दोहराने से शुरू होता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह का कार्य फिर से 1999 में कारगिल में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ के जरिये दोहराई गई। पाकिस्तान का यह रूख जम्मू कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को समर्थन देने की बात स्पष्ट करता है और जो आज भी जारी है। यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया ने अपने बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बलूचिस्तान की चर्चा करके लक्षमण रेखा लांघने की बात कही है, स्वरूप ने कहा कि हम इसे ऐसे देश का अद्भुत बयान पाते हैं जो कूटनीति में किसी लक्ष्मण रेखा को नहीं मानता है।

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