आतंकवाद से निपटने में संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति पर चुनिंदा रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस कदम का पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘यह उस प्रतिबद्धता पर सही नजर नहीं आता जो कहती है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद की बुराई को मजबूती से परास्त करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि भारत इस बात से निराश है कि जैश ए मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर के नाम को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित एक आतंकवादी प्रतिबंध समिति की सूची में शामिल कराए जाने संबंधी आवेदन पर तकनीकी रोक लगा दी गई है। स्वरूप ने आरोप लगाया, ‘इसके कामकाज का तरीका समिति को आतंकवाद से मुकाबले में एक चुनिंदा रुख अपनाने की ओर ले जा रहा है।’
उन्होंने कहा कि यह भारत की समझ से परे है कि पाकिस्तान स्थित जैश ए मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति ने 2001 में उसकी आतंकवादी गतिविधियों के लिए सूची में डाला था लेकिन उस समूह के मुख्य नेता, फाइनेंसर और उसे हवा देने वाले व्यक्ति के नाम को शामिल करने पर तकनीकी रोक लगा दी गई है।
स्वरूप ने कहा, ‘दो जनवरी को पठानकोट पर हुआ हालिया आतंकी हमला दिखाता है कि मसूद अजहर को सूची में नहीं डालने के खतरनाक परिणाम भारत को लगातार भुगतने पड़ रहे हैं। आतंकवादी समूहों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को देखते हुए इसका परिणाम पूरी अंतरराष्टीय बिरादरी को झेलना पड़ेगा।’ प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का लक्ष्य सभी सदस्य राष्ट्रों और उनके नागरिकों की जैश और उसके नेता मोहम्मद मसूद अजहर जैसे आतंकवादी समूहों की गतिविधियों से रक्षा करना होना चाहिए।
गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ संयुक्त रूप से आतंकवाद को एक बड़ी समस्या करार दिया था। चिनफिंग ने कहा था, ‘आतंकवादी खतरा लगातार बढ़ रहा है। सबसे बड़ा विकासशील देश और सबसे बड़ा विकसित देश और साथ ही विश्व की दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाएं होने के नाते विश्व शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने की चीन और अमेरिका की जिम्मेदारी बढ़ रही है। बहुत से ऐसे व्यापक क्षेत्र हैं जहां हम दोनों को एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए और हम कर सकते हैं।’ एक दिन पहले चीन ने संयुक्त राष्ट्र समिति से अपील की थी कि वह इस दिशा में अभी कदम नहीं बढ़ाए।
वीटो अधिकार के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक चीन ने दावा किया है कि उसका फैसला तथ्यों तथा नियमों पर आधारित था।