चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने बयान में कहा, भारतीय पक्ष की गतिविधि दोनों पक्षों के बीच विवादों को सही से सुलझाने और नियंत्रित करने के लिहाज से कारगर नहीं है और द्विपक्षीय रिश्तों की प्रगति के सामान्य हालात के अनुरूप भी नहीं है। हुआ ने कहा कि चीन ने चीन-भारत सीमा पर विवादित क्षेत्र की प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा पर भारत के साथ कड़ा विरोध दर्ज कराया है।
चीन की सरकारी शिन्हुआ संवाद समिति ने हुआ के बयान के हवाले से जारी खबर में कहा, मोदी ने शुक्रवार को चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से में एक विवादित क्षेत्र की यात्रा की और तथाकथित अरणाचल प्रदेश की स्थापना से जुड़े आयोजनों में शामिल हुए। इस राज्य की भारतीय अधिकारियों ने 1987 में गैरकानूनी और एकपक्षीय तरीके से घोषणा की थी। हुआ ने कहा, चीन सरकार ने कभी तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी। उन्होंने कहा कि चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से में विवादित क्षेत्र पर चीन का रुख एक समान और स्पष्ट है। यह तथ्य सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त है कि चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से पर बड़ा विवाद है।
शिन्हुआ की खबर में दावा किया गया है कि अरुणाचल प्रदेश की स्थापना व्यापक रूप से तिब्बत के तीन क्षेत्रों-मोन्युल, लोयुल और लोअर सायुल में हुई थी जो फिलहाल भारत के कब्जे में हैं। चीन इन्हें हमेशा अपना क्षेत्र बताता है जो मैकमोहन रेखा तथा चीन व भारत के बीच परंपरागत सीमा के बीच में स्थित हैं। चीन मैकमोहन रेखा को भी मान्यता देने से इनकार करता है। शिन्हुआ ने दावा किया है कि उपनिवेशवादी अंग्रेजों ने 1914 में चीन के उल्लेखित तीनों क्षेत्रों को भारत में शामिल दिखाने के प्रयास में गुप्त तरीके से अवैध मैकमोहन रेखा बनाई। चीन की किसी सरकार ने कभी इस रेखा को स्वीकार नहीं किया। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का भाग बताता है। हुआ ने कहा, हम भारतीय पक्ष से मांग करते हैं कि चीनी पक्ष की इस पुरजोर चिंता पर ध्यान दे। चीन हमेशा अरुणाचल प्रदेश में भारतीय नेताओं की यात्रा पर विरोध दर्ज कराता रहा है। चीन की प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है जब दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की 18वें दौर की सीमा वार्ता अगले महीने किसी समय हो सकती है और मोदी की मई में चीन यात्रा की संभावना है।