माना जा रहा है कि विक्रमसिंघे की पार्टी को बहुमत के करीब लाकर देश की जनता ने अपने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना का हाथ मजबूत किया है क्योंकि सिरिसेना राजपक्षे को किसी हालत में प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहते थे। वैसे सिरिसेना और राजपक्षे दोनों एक ही राजनीतिक गठबंधन यूपीएफए के सदस्य हैं मगर राजपक्षे को चुनाव नहीं लड़ने देने की उनकी इच्छा को गठबंधन के अंदर समर्थन नहीं मिला और राजपक्षे चुनाव लड़ने में कामयाब हो गए। राजपक्षे और उनके परिवार के अन्य सदस्यों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और राष्ट्रपति के रूप में देश के तमिल उग्रवाद को सख्ती से कुचल देने के कारण देश के बहुसंख्यक सिंहली आबादी में मिली अपार लोकप्रियता के दम पर इस परिवार पर सत्ता हर हाल में अपने हाथ में रखने का आरोप भी लगा है।
गौरतलब है कि इसी लोकप्रियता के दम पर राजपक्षे ने अधिकतम दो बार राष्ट्रपति चुने जाने के नियम को बदलवा दिया था और तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव इस वर्ष जनवरी में लड़ा था मगर देश वासियों ने उन्हें हराकर सिरिसेना को सत्ता सौंप दी थी। तब सिरिसेना का समर्थन विक्रमसिंघे के अलावा तमिल पार्टियों ने भी किया था। इसके अलावा उदारवादी सिंहलियों के एक तबके का समर्थन भी उन्हें मिला था और इसी वजह से देश राजपक्षे की तानाशाही शासन के चंगुल में फंसने से बच गया था। उस समय ऐसी खबरें थीं कि राजपक्षे ने सेना को हस्तक्षेप करने के लिए कहा था मगर सेना ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था जिसके कारण सिरिसेना बिना किसी बाधा के राष्ट्रपति बन पाए थे। राष्ट्रपति बनने के बावजूद वह राजपक्षे को संसदीय चुनाव लड़ने से रोक नहीं पाए हालांकि उन्होंने और विक्रमसिंघे ने राजपक्षे परिवार पर लगे आरोपों की जांच जरूर शुरू करवा दी है। राजपक्षे को उम्मीद थी कि अगर वह प्रधानमंत्री बन गए तो इन जांचों से पार पा लेंगे मगर अब ऐसा नहीं हो पाएगा। दिलचस्प तथ्य यह है कि सिरिसेना और विक्रमसिंघे विपक्षी गठबंधनों के नेता हैं मगर राजपक्षे को हराने के लिए जहां विक्रमसिंघे ने सिरिसेना का समर्थन किया वहीं राष्ट्रपति बनने के बाद सिरिसेना ने अल्पमत गठबंधन के नेता विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया। इन चुनावों में भी दोनों अलग-अलग पार्टियों में थे मगर विक्रमसिंघे ने खुलकर कहा था कि चुनाव जीतने पर वह पूरी तरह सिरिसेना का सहयोग करेंगे।
पीटीआई भाषा के अनुसार मंगलवार को जब चुनाव के नतीजे आने शुरू हुए तो पहले तो राजपक्षे ने अपनी हार स्वीकार कर ली मगर बाद में इससे पलट गए और अंतिम आधिकारिक नतीजे आने का इंतजार करने की बात कही। हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ। देर शाम तक आए नतीजों के अनुसार देश के 22 जिलों में से 11 जिलों में विक्रमसिंघे का गठबंधन जबकि 8 जिलों में राजपक्षे का गठबंधन जीता है। तीन तमिल बहुल जिलों में तमिल नेशनल अलाएंस को जीत मिली है। स्थानीय मीडिया के अनुसार विक्रमसिंघे (66) राष्ट्रपति सचिवालय में एक सादे समारोह में शपथ लेंगे और राष्ट्रीय सरकार की कैबिनेट का गठन बाद में किया जाएगा। मतगणना पूरा होने के करीब पहुंचने के साथ ही विक्रमसिंघे ने एक बयान जारी कर कहा, मैं आप सभी को हाथ मिलाने के लिए आमंत्रित करता हूं। चलिए साथ मिलकर सभ्य समाज का निर्माण करते हैं, सहमति वाली सरकार बनाते हैं और नया देश बनाते हैं।