ओमिक्रोन वेरिएंट के मामले बढ़ने की चिंता के बीच संयुक्त राष्ट्र के एक हेल्थ एजेंसी पैनल ने गुरुवार को कहा है कि मौजूदा वैक्सीन के नए कोविड-19 वेरिएंट के खिलाफ प्रभावशीलता के लैबोरेटरी डेटा भले ही उपयोगी हैं, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ये गंभीर रूप से मरीजों के लिए कितने प्रभावी हो सकते हैं? यह बयान विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस आश्वासन के बाद आया है जब मौजूदा वैक्सीन, कोरोना से बुरी तरह से प्रभावित लोगों को छह महीने या इससे ज्यादा वक्त तक बचाकर रखते हैं।
डब्ल्यूएचओ के डिपार्टमेंट ऑफ इम्युनाइजेशन, वैक्सीन्स एंड बॉयोलॉजिकल्स के डायरेक्टर डॉक्टर केट ओब्रायन ने कहा 'न्यूट्रलाइजेशन डेटा बेशक एक आधार हैं, लेकिन वास्तव में यह क्लीनिकल डेटा हैं जो ओमिक्रोन की स्थिति को कैसे 'मैनेज' करना है, इस बारे में प्रभावी साबित हो सकते हैं।'
उन्होंने आगे कहा कि इस वक्त मौजूदा वैक्सीन और उसकी प्रभावशीलता की वजह से प्रतिरक्षा क्षमता आंशिक रूप से अच्छी है, लेकिन उस स्तर पर नहीं पहुंच पा रही है जहां हर्ड इम्युनिटी की अवधारणा को हासिल किया जा सके।
युएन न्यूज के अनुसार डॉ. ओब्रायन ने कहा कि यह सार्वभौमिक तौर पर कम से कम एक वैक्सीन की कमी की वजह है। इसके कारण समृद्ध देश तो वैक्सीनेशन अभियान में सफल हो रहे हैं, लेकिन गरीब देश अब भी जीवनरक्षक टीकों की कमी से जूझ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना वैक्सीन की जमाखोरी के कारण महामारी बढ़ने का खतरा बढ़ सकता है। डब्ल्यूएचओ के अधिकारी ने कहा कि वैक्सीन के बढ़ते क्षेत्र के बीच पहले ही टीका लगवा चुके लोगों में कथित 'ब्रेकआउट इनफेक्शन' कोई हैरान होने वाली बात नहीं है। इससे यह साबित नहीं होता है कि वैक्सीन काम नहीं कर रही है।
ओमिक्रोन को लेकर डॉ. ओब्रायन ने कहा कि उन लोगों को सबसे अधिक खतरा है, जिन्होंने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों में 80 से 90 प्रतिशत ऐसे ही लोग हैं।