रानावि को फिल्म में जाने की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करने और उसके भविष्य के सवाल पर, अपने खास किरदारों की वजह से जाने जाने वाले अभिनेता का कहना था कि इसमें स्थितियों के अलावा हमारी नज़र का फेर भी शामिल है। तमाम ऐसे लोग हैं जो नाटक में वापस आते हैं और इन्ही जुनूनी लोगों की वजह से नाटक आज भी जीवित है, खेला और देखा जा रहा है। इसलिए हमारी नज़र उन पर भी होनी चाहिए जो नाटक के लिए जीवन दे रहे हैं और अपने राज्यों में जा कर इस पर काम कर रहे हैं।
बीत समय की तमाम कड़वी-मीठी यादें साझा करने के साथ ही मनोज ने यह भी बताया कि तीन बार वे रानावि में प्रवेश पाने में असफल भी रहे लेकिन अभिनय में दक्षता और तकनीक सीखने की उनकी जिद ने उन्हें प्रवेश का अवसर दिला ही दिया।
नाटक प्रेमियों ने गुरुवार को पांच नाटकों का आनंद लिया, जिसमें हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के साथ ही विदेशी भाषा भी शामिल थी। राजकुमार राइकवार का नाटक पांचाली की शपथ, अमिताभ दत्ता की तोमार आमी, धार्मिक पांड्या की मनभाट आख्यान, अदिति देसाई का समुद्र मंथन एस आई समरकोड्डी की श्रीलंका-लव एंड लाइफ के मंचन के अलावा विभिन्न समूहों के करीब 53 नुक्कड़ नाटक भी आयोजन में शामिल हैं।
इस मौके पर मीडिया से बातचीत के दौरान लोरेट्टा के निर्देशक सुनील सनबाग, शेकल छन्नरा खोन्जे के श्यामल चक्रवर्ती, डी इलुमलाई, वाई सदानंद सिंह, देबोरा मेरोला ने अपने-अपने अनुभव साझा किए।
नाट्य गतिविधियों के अलावा कथा कार्यशाला श्रृखला में सदियों पुरानी चित्रकला शैली के तहत ‘कीर्तन’ चित्रकला का आयोजन किया। यह मराठी शैली की श्रृखला है जिसके माध्यम से आध्यात्मिक कथाओं को चित्रित किया जाता है। कला प्रेमियों ने इसमें चारु दत्ता, विजय उपाध्याय, मनोज बदवालकर की कलाओं का आनंद लिया और समीक्षकों ने बारीकियों पर भी गौर किया।