Advertisement

एनएसडी रंगमंडल के 60 सालः आधुनिकता और परंपरा के बीच फंसा, जनता से कैसे जुड़े हिंदी नाटक

नई दिल्ली। क्या राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय आधुनिकता और परंपरा के बीच फंस गया और आम जनता में रंग संस्कार...
एनएसडी रंगमंडल के 60 सालः आधुनिकता और परंपरा के बीच फंसा, जनता से कैसे जुड़े हिंदी नाटक

नई दिल्ली। क्या राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय आधुनिकता और परंपरा के बीच फंस गया और आम जनता में रंग संस्कार विकसित करने में विफल हो गया है। यही हिंदी रंगमंच का मौजूदा संकट बन गया  है जबकि मराठी रंगमंच जनता में लोकप्रिय है क्योंकि उसने व्यवसायिक  रंगमच का रास्ता अख्तियार किया है।

एनएसडी रंगमंडल के 60 साल पूरे होने पर रंगकर्म से जुड़े नामी गिरामी कलाकारों निर्देशकों और अभिनेताओं की आज से शुरू हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने ये सवाल खड़े किये। पांच दिनों में हो रही इस संगोष्ठी में पद्मश्री राम गोपाल बजाज, कीर्ति जैन,  नादिरा बब्बर, देवेंद्र राज अंकुर, अनुराधा कपूर, सुरेश शर्मा, वामन केंद्रे नीलम मान सिंह, हिमानी शिवपुरी, हेमा सिंह,राजेन्द्र गुप्ता, अनंग देसाई, रोबिन दास  काजल घोष, बापी बोस, वर्तमान निर्देशक चितरंजन त्रिपाठी जैसे नामी गिरामी रंगकर्मी भाग ले रहे हैं।

पहले सत्र में वामन केंद्रे देवेंद्र राज अंकुर और ज्योतिष जोशी ने कुछ बुनियादी और महत्वपूर्ण सवाल उठाये जिस पर खूब तालियां भी बजी लेकिन श्री त्रिपाठी ने अंत में वक्ताओं के सावलों का जमीनी स्तर पर करारा जवाब दिया। वैसे सभी वक्ताओं ने रंगमंडल की ऐतिहासिक भूमिका की सराहना की और माना कि रंगमंडल के नाटकों से ही एनएसडी की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी तथा उसने  नाटकों के मंचन में गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया बल्कि एक मानदंड कायम किया।

श्रीमती जैन ने एनएसडी की स्थापना में कमलादेवी चट्टोपाध्याय और जगदीश चन्द्र माथुर जैसे लोगों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि पहले जो नाट्य मण्डलियां काम करती थी उसमें एक ही भाषा के लोग काम करते थे लेकिन एनएसडी और उसके रंगमंडल में विभिन्न भाषाओं के लोग तो आये पर वे सभी हिंदी में ही रंगमंच करते थे। आज हमें क्लासकिल नाटकों एवम  समकालीन नाटकों तथा नये नाटकों का अलग अलग रंगमंडल बनाने की जरूरत है जैसा की इंग्लैंड जैसे देशों में। हमलोगों ने घुमंतू रंगमंडल का प्रयोग किया पर एक साल के बाद बन्द हो गया। उन्होंने विभिन्न भाषाओं में भी देश में रंगमण्डल स्थापित करने पर बल दिया।

एनएसडी के पूर्व निदेशक एवम मराठी रंगमचं के प्रसिद्ध रंगकर्मी वामन केंद्रे ने कहा कि हिंदी रंगमंच अभी व्यायवसायिक नहीं हो पाया है जबकि हिंदी में जो कलात्मक नाटक खेले गए वही मराठी में व्यायसायिक नाटक हो गए और वहां तो  ब्लैक में भी टिकट बिके। मराठी रंगमंच स्माल स्केल इंडस्ट्री हो गया है। करीब सौ से सवा करोड़ का यह व्यापार हो गया है लेकिन हिंदी रंगमंच आज तक व्यवसायिक नहीं हो पाया है। उन्होंने एनएसडी को वंचित समुदाय एवम समाज के हाशिये पर रहे लोगों के दुख दर्द को व्यक्त करने वाले नाटकों को मंचित करने की बात कहीं। उन्होंने बताया कि मराठी में आल द बेस्ट नामक नाटक के ढाई साल में साढ़े तीन हज़ार शो हो चुके हैं।

50 साल से कहांनी के रंगमंच जैसा प्रयोग करने वाले श्री अंकुर ने कहा कि हिंदी में आलम यह है कि घासी राम कोतवाल जैसा प्रसिद्ध और चर्चित नाटक के डेढ़ सौ शोहोने में  बीस साल लग गए। उन्होंने रंगमण्डल के कलाकारों के संघर्ष को रेखांकित करते हुए कहा कि इन कलाकारों की ठेके की नौकरी नहीं होनी चाहिए बल्कि पक्की नौकरी होनी चाहिए और उन्हें विश्विद्यालय के सहायक प्रोफेसर के दर्जे की सैलरी मिलनी चाहिए। लेकिन उनक़ा भविष्य अनिश्चित रहता है ऐसे में वह क्या नाटक करेगा।

श्री जोशी ने कहा कि आज का नाटक अपनी परंपरा से कट गया है। एनएसडी ने आधुनिक नातकों  का मंचन तो किया पर नौटंकी शैली लोक नाटकों की शैली में उसे नहीं किया इसलिए उसे दर्शक नहीं मिले जबकि ग्रामीण अंचल में दर्शक पारंपरिक शैली के नाटक अभी भी देखते हैं। उनक़ा कहना था कि सभी कलाओं में आधुनिकता का बोलबाला है चाहे वह साहित्य हो चित्रकला या संगीत लेकिन वे अपने लोक से कट गई है। हम जनता में रंग संस्कार का विकास नहीं कर पाए।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राम गोपाल बजाज ने भी कहा कि हमें अधिक रंगमण्डलियाँ बनानी होंगी और देश में घूमकर नाटक करना होगा नये नाटक करने होंगे नए प्रयोग करने होंगे। उन्होंने कविता पाठ को रंगमंच में इस्तेमाल कर नाटकों के मंचन करने का सुझाव  दिया।

श्री त्रिपाठी ने कहा कि वक्ताओं की आलोचना का वे स्वागत करते हैं क्योंकि सभी उनके गुरुजन हैं लेकिन रंगमंडल के विस्तार कलाकारों को अच्छी नौकरी देने के लिए पैसा कहां से आएगा। उन्होंने बताया कि एनएसडी का बजट सरकार ने उल्टे कम कर दिया। हम किसी तरह पैसे जुटाकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वक्तागण हमें रास्ता दिखाएं। हमारा समाज मीडिया सरकार सब सहयोग करे तभी रंगमंच का विकास हो सकता लेकिन एलेक्ट्रोनिक मीडिया हमारे बड़े बड़े फेस्टिवलों को दिखाता तक नहीं हैं। हमारे कलाकारों को प्रोत्साहन की जरूरत है। उन्होंने घोषणा की कि पशिम और पूर्व भारत में रंगमंडल की शाखाएं खुलने जा रही हैं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad