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अजय सिंह की पुस्तक का लोकार्पण

अजय सिंह की कविताएं भारतीय लोकतंत्र की विफलता को पूरी शिद्दत से प्रितिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित हैं।
अजय सिंह की पुस्तक का लोकार्पण

‘सांप्रदायिकता से तीव्र घृणा उनकी कविताओं में मुखर होती है।’ यह बात वरिष्ठ पत्रकार और राजनीनिक विश्लेषक अजय सिंह के पहले कविता संग्रह ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ पर चर्चा में कही गईं। संग्रह के प्रकाशक गुलमोहर किताब (दिल्ली) द्वारा दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित इस कायर्क्रम में कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक, चित्रकार, प्राध्यापक और तमाम विधाओं के वरिष्ठ जनों ने शिरकत की।

वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल ने कहा अजय सिंह की कविताएं न्यायपूर्ण आक्रामकता की कविताएं हैं। विचार के स्तर पर वे बेहद महत्वपूर्ण हैं और एक बायोस्कोपिक वितान रचती हैं।

मंगलेश डबराल ने कहा कि अजय की कविताओं में प्रेम से तुरंत राजनीति और राजनीति से प्रेम, बच्ची से राजनीति, राजनीति से परिवार के बीच जो छलांग लगती है, वह जबर्दस्त है। चर्चा की शुरुआत करते हुए आलोचक वैभव सिंह ने अजय सिंह की एक कविता को उद्धृत किया और कहा कि ये ‘पवित्र आवारागर्दी से निकली कविताएं हैं। यह प्रतिरोध और छापामार अंदाज की कविताएं हैं। ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ कविता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस कविता में राष्ट्रपति भवन सत्ता प्रतिष्ठान के एक रूपक के रूप में आया है, जिसके माध्यम से अजय सिंह भारतीय लोकतंत्र की विफलता की कहानी कहते हैं।

वरिष्ठ कथाकार और ‘समयांतर’ पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि  अजय घर-परिवार से शुरू कर देश-दुनिया को इसमें समेट लेते हैं। उन्होंने कहा कि कविताओं में बिंब आए हैं, वह कवि की सचेत वैचारिकी का परिचायक है। युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने ‘राष्ट्रपित भवन में सूअर’ कविता के बारे में कहा कि यह इस बात को बताती है कि भारतीय लोकतंत्र में किन लोगों का होना शामिल होना था जिन्हें शामिल नहीं किया गया।

लेखक शीबा असलम  फहमी ने अजय सिंह की कविताओं को हिंदुस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की फैक्टशीट कहा। शोभा सिंह ने कहा कि अजय की कविताएं उनके जीवन की ही तरह अन्याय और जुल्म से टकराने का जोखिम उठाती हैं। उनके मुताबिक कवि का सपना लोकतांत्रिक भारत का सपना है। ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने ‘खिलखिल को देखते हुए गुजरात’ कविता का विस्तार से जिक्र करते हुए इसे बेहद महत्वपूर्ण कविता बताया। उन्होंने कहा इस कविता में आज के भारत का इतिहास है।

कवि इब्बार रब्बी ने कहा कि अजय सिंह की कविताओं में भावनाओं का ज्वार बहता है। उन्होंने बहुत विस्तार से अजय सिंह की कविताओं की विवेचना करते हुए कहा यहां जो व्यक्तिगत है, वही राजनीनिक है। आलोचक संजीव कुमार ने कहा ये कविताँ बहुत डिमांडिंग हैं। ये अंतर-पाठीय हैं। इन्हें समझने के लिए कई संदर्भों का पता होना चाहिए। फिनलैंड से आए कवि तथा चित्रकार सईद शेख ने कवि अजय सिंह के साथ अपने लगभग 50 साल पुराने रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा कि युवावस्था में सामंतवाद की गिरफ्त में रहने वाले अजय ने एक बार जब मार्क्‍सवाद का दामन पकड़ा तो कभी नहीं छोड़ा।

वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत ने कहा कि यह संग्रह अजय सिंह की विश्वास बढ़ाने वाली कवायद का हिस्सा है।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोताओं, पत्रकारों और कलाकारों ने शिरकत की। 

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