देश के सभी कोनों से, सभी भाषाओं में एक ही आवाज उठ रही है। यह अपने आप में ऐतिहासिक परिघटना है। इससे पहले इस देश में इतने बड़े पैमाने पर लेखकों-साहित्यकारों-रंगकर्मियों ने एक साथ एक ही मुद्दे पर मिलकर आवाज नहीं उठाई थी। वे सब अलग-अलग राज्यों से, अपनी-अपनी भाषाओं में एक ही स्वर बोल रहे हैं।
सांप्रदायिक राजनीति, अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ते हमलों और बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। अब तक विभिन्न भाषाओं के करीब 15 साहित्यकार पुरस्कार लौटा चुके हैं।
आजादी पर हमले के विरोध में साहित्यकारों का लगातार साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाना जारी है। यह सिलसिला पंजाब में भी शुरू हो चुका है। गुरुबचन भुल्लर, अजमेर सिंह औलख, आत्मजीत सिंह और कैनेडा में रह रहे वरियाम संधू पहले ही साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का ऐलान कर चुके हैं।
राजधानी दिल्ली में भारत कला मेला समाप्त हो गया है लेकिन उसकी ऐसी ही कई छवियां दर्शकों के दिमाग में दर्ज हो गई हैं। कला के विविध रंग इस मेले में देखने कि मिले। बड़े और नामी कलाकारों की कृतियां इस मेले में आम लोगों ने करीब से देखी और परखीं।