अब हिंदी के जाने-माने कवि व लेखक मंगलेश डबराल और राजेश जोशी के अलावा कश्मीरी लेखक गुलाम नबी ख्याल, कन्नड लेखक व अनुवादक श्रीनाथ डीएन समेत छह साहित्यकारों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है। उदय प्रकाश से शुरू हुए इस विरोध प्रदर्शन में अन्य भाषाओं के साहित्यकार भी जुड़ रहे हैं। नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी और सारा जोसेफ के बाद गुजराती लेखक गणेश देवी, अंग्रेजी के कथाकार अमन सेठी, कन्नड़ के कुम वीरभद्रप्पा और पंजाबी के तीन प्रख्यात लेखकों गुरबचन भुल्लर, अजमेर सिंह औलख व आत्मजीत सिंह ने अकादमी पुरस्कर लौटाते हुए मौजूदा माहौल को लेकर संस्था की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं।
इस बीच, जाने-माने कन्नड़ लेखक डॉ. अरविंद मलगट्टी ने साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद से इस्तीफा दे दिया है। बेंगलुरु में अपने त्यागपत्र की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि अकादमी को खुलकर ऐसी घटनाओं की निंदा करनी चाहिए। इससे पहले शशि देशपांडे, के. सच्चिदानंदन, पीके परक्कादावु भी अकादमी में अपने पदों से त्यागपत्र दे चुके हैं।
साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों का समर्थन करते हुए गुजराती साहित्यकार गणेश देवी ने कहा, यह उचित समय है कि जब लेखक एक रूख अख्तियार करें। गणेश वड़ोदरा स्थित भाषा शोध एवं प्रकाशन केंद्र के संस्थापक निदेशक हैं। तर्कवादी प्रो. एमएम कलबुर्गी की हत्या पर साहित्य अकादमी के रवैये का विरोध तेज होने के बाद संस्था के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि संस्था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में है और कहीं भी किसी लेखक या कलाकार पर हमले की निंदा करती है।
कश्मीरी लेखक ने भी लौटाया पुरस्कार
जाने-माने कश्मीरी लेखक और कवि गुलाम नबी खयाल भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि देश में अल्पसंख्यक आज असुरक्षित और खतरा महसूस करते हैं। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। अपनी किताब गाशिक मीनार के लिए 1975 में यह प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले खयाल ने कहा कि वह जल्द ही नकद पुरस्कार और ताम्र पट्टिका अकादमी को वापस कर देंगे।
पुरस्कार लौटाने वालों के समर्थन में आए सलमान रुश्दी
बुकर पुरस्कार विजेता लेखक सलमान रुश्दी ने भी भारत में सांप्रदायिक व असहिष्णु माहौल के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों का समर्थन किया है। रुश्दी ने ट्वीट किया कि वह याहित्य अकादमी का विरोध करने वाले नयनतारा सहगल और कई अन्य लेख का समर्थन करते हैं। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के लिहाज से यह चिंताजनक समय है।