“अभी बहुत कम करना है मुझे, एक सौ बीस साल तक जीऊॅगा मैं” अदम्य जीजीविषा से भरे भारतीय समकालीन मूर्तिकला के शीर्षस्थ कलाकार हिम्मत शाह बानवे साल की उम्र में जब अपने मिलने वालों के बीच यह जुमला उछाल कर ठहाका लगाते तो वातावरण ठहाकों से भर उठता । उनकी इस जिंदादिली को देख हर कोई मान लेता कि एक बीस ना सही, सौ का आंकडा तो हिम्मत शाह जरुर पूरा करेगा । ऐसा मानना तब और जरुरी हो जाता है जब एक सप्ताह पहले ही जयपुर के कला समीक्षक राजेश व्यास को फोन पर भविष्य की अपनी ढेर सारी योजनाओं के बारे में बताते हुए वह कहे कि “ स्टील आई एम यंग”। ऐसा जिंदादिल इंसान दो मार्च की सुबह दिल का दौरा झेल नही सकेगा, यह किसी ने सोचा भी नही था ।
आज हिम्मत शाह की मुख्य पहचान एक मूर्ति शिल्पी के रुप में होने लगी है । हांलाकि उन्होनें शुरु से ही कई माध्यमों में काम किया ।तैलरंग,जलरंगी चित्र,रेखाकंन, कोलाज, जले हुए कागज से तैयार किये गये म्यूरल , सिरेमिक्स, मूर्तिशिल्प , सीमेंट, क्रंकीट, जाली , लोहे के सरियों आदि किसी भी माध्यम और मैटीरियल में उन्होनें अभिव्यक्ति हो सकते थे । एक बार उन्होनें कला समीक्षक विनोद भारद्वाज से कहा कि हो सकता है कि कल में नृत्य करने लगॅू । जयपुर के कलाविद राजेश व्यास बताते है कि हिम्मत शाह जडता से परे थे । उनकी कलाकृतियों में भी कहीं कोई एकरसता नही थी । मूर्तिशिल्प, रेखाकंन रचते हुए वह अपने आपको भी भूल जाते थे और कुछ सृजित हो जाता तो इतना उत्साहित हो उठते थे कि बच्चे की तरह उछल कूद करने लगते थे । एक दफा कुमार गंधर्व की सीडी लेकर घर आ गये । सुनने सुनते औच्चक हिम्मत जी नृत्य करने लगे । वह ऐसे ही थे, मन से निर्मल,निश्छल ।
गुजरात के लोथल में 1933 में जन्मे हिम्मत का अनजाने में टेराकोटा कला और सिंधु घाटी सभ्यता की अन्य वस्तुओं से परिचय हो गया था। बाद में उन्हें दक्षिणामूर्ति से संबद्ध स्कूल घरशाला भेजा गया, जहां उन्होंने कलाकार-शिक्षक जगुभाई शाह के अधीन अध्ययन किया, फिर मुंबई में जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट से जुड़े और फिर 1956 से 1960 तक सरकारी सांस्कृतिक छात्रवृत्ति पर बड़ौदा चले गए।
बड़ौदा में, वह एन एस बेंद्रे और के जी सुब्रमण्यन से प्रभावित हुए। बाद में 1967 में, उन्हें पेरिस के एटलियर 17 में एसडब्ल्यू हेयटर और कृष्णा रेड्डी के तहत नक्काशी का अध्ययन करने के लिए फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति मिली।गुजरात में जन्म लेने के बावजूद, श्री हिम्मत शाह जी ने पहले शुरुआती समय में ललित कला अकादमी रीजनल सैंटर गढ़ी दिल्ली मे काफी लम्बे समय तक अपना कार्य किया और बाद में जयपुर को अपनी कर्मस्थली चुना।
एक बहुमुखी कलाकार हिम्मत शाह जी, का मिटटी टेराकोटा और सिरेमिक से लंबे समय से लगाव इस तरह रहा उन्होंने इसे अपने जीवन का भाग बना लिया। जिसे उनकी मूर्तिकला श्रृंखला हेड्स , बोतल, श्रृंखला में देखा जा सकता है। अपने जैन व्यापारी परिवार के विपरीत जाकर शाह ने कला को चुना और सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एम एस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा में पेंटिंग का भी अध्ययन किया। हिम्मत शाह जी ने विभिन्न विभिन्न सीरीज और विभिन्न विभिन्न माध्यमों का अपने कार्य में प्रयोग किया है, जैसे गन्नी क्लॉथ,जले हुए कागज़ के कोलाज, वास्तुशिल्प भित्ति चित्र, रेखाचित्र और धातू की मुर्तियाँ भी बहुत बनाई, जबकि वह खुद को एक मूर्तिकार के रूप में देखते हैं। उनके द्वारा बनाई गए । शुरुआती दौर के मिटटी,टेराकोटा, सिरेमिक स्कल्पचर बहुत ही दमदार और प्रभावित रहे हैं। उन्होंने विभिन्न विभिन्न उपकरण और अभिनव तकनीकें उनके पसंदीदा माध्यम सिरेमिक और टेराकोटा को एक आधुनिक समकालीन बढ़त देती हैं।
ग्रुप 1890 के संस्थापक सदस्य हिम्मत शाह को 1966 में फ्रांस सरकार से छात्रवृत्ति, 1956 और 1962 में ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार, 1988 में साहित्य कला परिषद पुरस्कार और 2003 में मध्य प्रदेश सरकार से कालिदास सम्मान प्राप्त हुआ।
लैंडस्केप विधा के काम अब कम ही देखने को मिलते हैं।इस नाते भी उनके चित्रों का अपना आकर्षण है।उनकी कला शिक्षा दिल्ली के कालेज आर्ट आर्ट मे हुई है,जहां उन्हे राजेश मेहरा जैसे रचनाशील कलाकार का भी सान्निध्य और मार्गदर्शन मिला,जो ग्रुप 1890 के सदस्य रहे हैं,स्वामीनाथन के साथी--सहयोगी।सीमा भार्गव धीरज के साथ ही कैनवस पर आयल कलर से ही काम करती हैं।रंगों का,उनकी रंगतों का एक संवेदनशील ,सधा हुआ इस्तेमाल आत्मीय हो उठता है।
आर्थिक समृद्धि आम तौर पर किसी भी कलाकार के जीवन मे बहुत देर से आती है।अक्सर कलाकार ऐसी समृद्धियों तक पहुँचते पहुँचते चुक जाते हैं।इस कला की दुनियां में जीवन को बचाये रखने की शर्तें ही कुछ ऐसी है। हिम्मत शाह के जीवन में भी आर्थिक समृद्धि बहुत देर से आई।. वे अनवरत अपनी कला यात्रा में लगे रहे और नित नए प्रयोग जारी रखे. एक उम्दा चित्रकार भी हैं हिम्मत शाह। मूर्तिशिल्प की और उनके रुझान के लिए वो कहते हैं कि "मिटटी जैसे जैसे चढ़ती है इंसान का अहम् नीचे गिरता है. हर कलाकार को मिटटी में काम ज़रूर करना चाहिए. मिटटी जैसी कोमलता और फ्लेक्सिबिलिटी से आरम्भ से ही हर शिशु को परिचित होना चाहिए. ये उसके व्यक्तित्व में भी बहुत कोमलता ला सकता है। काम करते हुए आनंद की जो अनुभूति होती है वही सृजन का प्रतिफल है।"
आजीवन अविवाहित रहे हिम्मत शाह का भरोसा सोसाइटी पर नहीं व्यक्ति पर रहा क्यूंकि "व्यक्ति में आत्मा होती है वो एकाकी रहते हुए भी सचेत रहता है। विवाह न करने के प्रश्न का उत्तर उनके स्वयं के पास तो नहीं था परन्तु वो सबसे ताकतवर प्राणी स्त्री को मानते थे जिसने पुरुष जैसा काम्प्लेक्स जीव को जन्म दिया।"सृजन बहुत साहस का विषय है और जीवन में सहस करना चाहिए" सौंदर्य तो चारों तरफ बिखरा पड़ा है पर कितने लोग हैं जो सौंदर्य को देखते हैं ? और कितने लोग हैं जो अभिव्यक्त करते हैं ?और कितने लोग हैं जो सौंदर्य को देख कर समाप्त हो गए अभिव्यक्त नहीं कर पाए।अभिव्यक्ति के लिए साधना करनी पड़ती है. अभिव्यक्ति से आगे कोई चीज़ नहीं है।
कलाकार हिम्मत शाह को 2 मार्च 2025 रविवार को हार्ट अटैक से निधन हो गया। उनके सीने मे तेज दर्द के कारण उन्हें वैशालीनगर शैल्बी हॉस्पिटल ले जाया गया जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
( लेखक राजेंद्र शर्मा कला और संगीत के जानकार हैं)