कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ को बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली। उच्च न्यायालय ने सेंसर बोर्ड को फिल्म के तत्काल प्रमाणन संबंधी कोई भी निर्देश देकर तुरंत राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति बी पी कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ ने कहा कि वह मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के मद्देनजर इस स्तर पर तत्काल कोई राहत नहीं दे सकती, जिसमें सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया गया है कि वह फिल्म के प्रमाणन से पहले आपत्तियों पर विचार करे।
अदालत ने कहा कि अगर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश नहीं होता तो वह ‘आज’ ही केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दे देती।
ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज ने बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सीबीएफसी को कंगना रनौत निर्देशित फिल्म ‘इमरजेंसी’ के लिए प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
याचिका में दावा किया गया है कि सेंसर बोर्ड के पास प्रमाणपत्र तैयार है लेकिन फिल्म की रिलीज के बाद कानून व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका के चलते वह इसे जारी नहीं कर रहा।
खंडपीठ ने बुधवार को निर्माता की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि प्रमाणपत्र तैयार है लेकिन जारी नहीं किया गया। उसने कहा कि जब फिल्म के निर्माताओं को एक बार ऑनलाइन प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया तो सीबीएफसी का यह तर्क सही नहीं है कि अध्यक्ष के हस्ताक्षर नहीं होने के कारण प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया।
अदालत के आदेश के बाद रनौत ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
उन्होंने कहा,‘‘ उच्च न्यायालय ने इमरजेंसी के प्रमाणन को अवैध रूप से रोकने के लिए सेंसर को फटकार लगाई है।’’
अदालत ने कहा कि यदि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश नहीं होता तो उसने सीबीएफसी को ‘‘आज ही प्रमाणपत्र जारी करने’’ का निर्देश दे दिया होता।
उसने कहा, ‘‘ हम जानते हैं कि पीछे कुछ और चल रहा है। हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। सीबीएफसी आपत्तियों पर विचार करे और 18 सितंबर तक निर्णय ले।’’
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सिख समूहों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें दावा किया गया था कि फिल्म में ऐसे दृश्य हैं जो उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं और अशांति पैदा कर सकते हैं।
सीबीएफसी ने दावा किया कि फिल्म को अभी तक प्रमाणपत्र जारी किया जाना बाकी है।
इसके बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया कि वह फिल्म को प्रमाणपत्र जारी करने से पहले याचिकाकर्ता सिख समूहों द्वारा फिल्म पर जतायी गयी आपत्तियों पर विचार करे।
ज़ी एंटरटेनमेंट द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर वह कोई राहत नहीं दे सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सीबीएफसी को निर्देश दिया है। अगर हम आज कोई राहत देते हैं तो यह सीधे तौर पर उस आदेश का उल्लंघन होगा। अगर हम आज कोई आदेश पारित करते हैं तो हम सीबीएफसी से उच्च न्यायालय के एक और आदेश का उल्लंघन करने के लिए कहेंगे। हम ऐसा नहीं कर सकते। न्यायिक मर्यादा हमसे यही मांग करती है।’’
अदालत ने कहा कि सीबीएफसी इसकी जांच करे।
पीठ ने कहा, ‘‘अगर फिल्म एक या दो सप्ताह की देरी से रिलीज होती है तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।’’
पीठ ने सेंसर बोर्ड को सिख समूहों द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर विचार करने और 18 सितंबर तक फिल्म को प्रमाणित करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘हमारे प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि किसी फिल्म के कारण कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है, यह फिल्म की रिलीज रोकने का आधार नहीं है। इसका ध्यान राज्य के तंत्र को रखना है।’’
ज़ी एंटरटेनमेंट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वेंकटेश धोंड ने दलील दी कि जब फिल्म को पहली बार प्रमाणन के लिए प्रस्तुत किया गया था, तो अन्य निर्माता मणिकर्णिका फिल्म्स को यू/ए प्रमाणपत्र वाला एक ईमेल प्राप्त हुआ था।
हालांकि, बाद में कुछ संशोधन करने के लिए कहा गया। उन्होंने कहा कि तब से फिल्म की रिलीज को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रमाणपत्र की ‘हार्ड कॉपी’ जारी नहीं की गई है।
सीबीएफसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रमाणपत्र ‘ऑटो जेनरेटेट’ था तथा इसे जारी नहीं किया गया क्योंकि अध्यक्ष ने अभी तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
पीठ ने कहा कि प्रमाणपत्र जारी करने वाले ‘ऑटो जेनरेटिड’ ईमेल को रोका जाना चाहिए।
अदालत याचिका पर 19 सितंबर को सुनवाई करेगी।