सुश्री समीरा कोसर कथक की ऊर्जावान और पारंगत नृत्यांगना हैं। उन्होंने जयपुर घराने के उत्कृष्ट गुरु पं. कन्हैया लाल और विदुषी शोभा कोसर से कथक के हर पक्ष को लगन से सीखा और गुरु की सिखावन को गहराई से आत्मसात किया। आज उनका शुमार परिपक्व कथक कलाकारों में है। सदियों पुरानी कथक परंपरा की विरासत को समीरा अपनी कला में समेटकर सजगता से उभारने का प्रयास कर रही हैं।
हाल में दिल्ली के हैबिटेट सेंटर के स्टेन सभागार में निनाद फाउंडेशन के नाद गुंजन समारोह में समीरा ने खनकते पैरों की थाप से एकल नृत्य प्रस्तुत किया। मंगलाचरण के रूप में गणेश वंदना ‘वक्रतुण्ड महाकाय’ को भक्ति भाव में प्रस्तुत किया। उसके उपरांत उन्होंने परंपरागत कथक नृत्य के व्याकरणबद्ध प्रकारों, ठाठ यानी खड़े होने के विविध अन्दाज, उठाने, परन आमद, चक्करदार परन से लेकर गत निकास में विभिन्न छवियों को बड़ी रसमयता और जीवंतता से दर्शाया। जयपुर घराने की खास लमछड़ परन प्रमिलु को पेश करने के साथ लयात्मक गाति में थिरकती चालों में सुंदर उड़ान थी।
समीरा की संरचना में नृत्य नाटिका ‘काया स्वरूप’ की प्रस्तुति भी मनोरम और दर्शनीय थी। उन्होंने अपने प्रदर्शन से कला रसिकों को यह एहसास कराया कि कथक अतिशय पारदर्शी और समृद्ध नृत्य शैली है। इन सब खूबियों ने कथक के प्रति लोगों के मन में आकर्षण पैदा किया है। उनकी यह नृत्य नाटिका मानवतावाद पर केंद्रीत थी। मानवतावाद का सार वैमनस्य और नफरत से ऊपर उठने और प्रेम-परोपकार से मन की शांति अर्जित करने में है। इस भाव की उदात्तता और संपूर्ण सौंदर्य समीरा की प्रस्तुति में रचा-बसा था। वैसे भी हिंदू हो या अन्य मत, सब मूलत: मानवीय प्रेम, करुणा और सखा भाव को जगाते हैं। सदियों से भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से मानवीय भाव धारा में निमग्न है।
समीरा ने इस मानवतावादी परंपरा का गहराई से अध्ययन करके उसके दार्शनिक पहलुओं को समझा है, जो एक बड़ी सीमा तक उनकी नृत्य नाटिका में उजागर हुआ। यह महत्वपूर्ण है कि मानवीय गुणों को प्रशस्त करने की कठिन डगर समीरा की कला में सरल और सहज दिखी। उन्होंने इस प्रस्तुति के माध्यम से शायद यह अहसास कराने का प्रयास किया कि मानवतावाद को अंगीकार करने में अंतस ज्योति से जीवन प्रकाशित होता है और कल्याणकारी पथ पर प्रशस्त होता है। इस प्रस्तुति को गारिमा प्रदान करने में बृजमोहन गंगानी की पढंत, तबला पर महमूद खां, गायन में रमेश परिहार, सितार पर सलीम कुमार और पखावज वादन में महाबीर गंगानी की प्रभावी संगत थी।