लॉकडाउन के चलते ठप हुई आर्थिक गतिविधियों का असर राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र की कंपनियों और श्रमिक वर्ग के बाद अब केंद्र सरकार के कामकाज पर भी दिखने लगा है। सरकार ने तय किया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में किसी भी नई स्कीम या परियोजना पर काम शुरू नहीं किया जाएगा। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत जो 20 लाख करोड़ रुपए की घोषणाएं की गई हैं, सिर्फ उन्हीं पर काम होगा। वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को पत्र लिखा है। इसमें वे योजनाएं भी शामिल होंगी जिन्हें पहले सैद्धांतिक मंजूरी दी जा चुकी है।
राजस्व संग्रह में आई है भारी गिरावट
दरअसल लॉकडाउन के चलते ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां करीब 2 महीने तक पूरी तरह से बंद रहीं। चाहे ऑटोमोबाइल हो या टीवी-फ्रिज जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल, सबकी बिक्री बंद थी। खाने-पीने और दूसरे जरूरी सामान की ही बिक्री इस दौरान हुई जिन पर जीएसटी की दरें कम हैं। इसलिए सरकार का राजस्व भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सरकार जीएसटी के पूरे आंकड़े भी जारी नहीं कर पा रही है। मई के अंत में इसने अप्रैल के सिर्फ सेंट्रल जीएसटी कलेक्शन के आंकड़े जारी किए, जो सिर्फ 5,934 करोड़ रुपये था। इसमें 87 फीसदी गिरावट आई। लॉकडाउन में ढील के बाद बाजार खुले हैं और फैक्ट्रियों में भी काम शुरू हुआ है, लेकिन अब भी मांग कम होने के कारण फैक्ट्रियों में क्षमता का आधा इस्तेमाल भी नहीं हो पा रहा है।
बदली प्राथमिकताओं के मुताबिक खर्च करने को कहा
वित्त मंत्रालय का कहना है कि इसे विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से मंजूरी के लिए नए प्रस्ताव मिल रहे हैं। इसका कहना है कि इसके निर्देशों के दायरे से बाहर की किसी भी स्कीम के लिए पैसा जारी नहीं किया जाएगा। वित्त मंत्रालय के अनुसार कोविड-19 महामारी के चलते सार्वजनिक संसाधनों पर अभूतपूर्व दबाव बना है, इसलिए उभरती परिस्थितियों और बदलती प्राथमिकताओं के मुताबिक संसाधनों का इस्तेमाल करने की जरूरत है।
स्वीकृत योजनाएं भी फिलहाल स्थगित रहेंगी
मंत्रालय के अनुसार 500 करोड़ रुपए तक की स्वीकृत योजनाएं भी वित्त वर्ष 2020-21 या अगले आदेश तक (दोनों में जो भी पहले हो) तक स्थगित रहेंगी। हालांकि ऐसी योजनाएं जिन्हें मौजूदा वित्त वर्ष में जारी रखने के लिए वित्त मंत्रालय ने जनवरी में मंजूरी दे दी थी, वे 31 मार्च 2021 तक जारी रहेंगी। इसके बाद इनके नतीजों के मूल्यांकन के आधार पर इन योजनाओं को आगे जारी रखा जाएगा।
मूडीज ने घटा दी है भारत की रेटिंग
राजस्व में कमी के बाद अगर सरकार खर्चों में कटौती नहीं करती है तो राजकोषीय घाटा काफी बढ़ जाएगा। हालांकि ज्यादातर अर्थशास्त्री मौजूदा हालात में राजकोषीय घाटा बढ़ने को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं। फिर भी उद्योग संगठन सीआईआई ने कहा है कि सरकार को घाटे पर ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इससे भारत की रेटिंग कम होगी, जिसके नतीजे पूरी अर्थव्यवस्था पर दिखेंगे। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने इसी सप्ताह भारत की रेटिंग बीएए2 से घटाकर बीएए3 कर दी थी। आर्थिक गतिविधियों में कमी को देखते हुए रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अनुमान जताया है कि बैंकिंग सेक्टर का ग्रॉस एनपीए मार्च 2021 में 11.3-11.6% हो जाएगा। मार्च 2020 में इसके 8.6 फ़ीसदी रहने का अनुमान है। इसका कहना है कि अगर 10 से 20 फ़ीसदी कर्ज लेने वालों ने भी डिफॉल्ट किया तो ग्रॉस एनपीए 3 से 8 फ़ीसदी तक बढ़ सकता है।