केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कर प्रशासन को स्वच्छ करने की कवायद के तहत पहली बार इस तरह का फैसला किया है जिसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हरी झंडी दिखाई है। इससे सरकार को करीब 7 करोड़ रुपये का मामूली राजस्व का नुकसान होगा, लेकिन इससे करीब 18 लाख मामले खत्म हो जाएंगे, जिससे कर बकाये के कुल मामलों में 10 फीसदी की कमी आएगी। इसका मकसद प्रशासनिक कार्यकुशलता में सुधार करना और कर संग्रह की लागत कम करना है। साथ ही इससे मामूली कर बकाये वालों करदाताओं को आसानी से रिफंड किया जा सकेगा।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, जिन 18 लाख बकायेदारों का टैक्स माफ किया गया है, उनमें अधिकतर मामले तीन साल से अधिक पुराने हैं। इस फैसले से लंबित मामलों में कमी आएगी, जिसकी वजह से अधिकारी बड़े डिफॉल्टरों से टैक्स वसूलने के अधिक से अधिक प्रयास कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि अभी तो 100 रुपए तक का टैक्स माफ किया गया है, लेकिन आने वाले समय में इस वसूली पर लगने वाले खर्च और मिलने वाले टैक्स की तुलना के आधार पर इस सीमा को और अधिक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस कदम का मकसद मुकदमों में कमी लाना और सरकार को बड़े डिफॉल्टरों को ज्यादा प्राथमिकता देने में मदद प्रदान करना है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'इन मामलों में वसूली का खर्च मिलने वाले कर से ज्यादा है। यह कवायद मामलों के आधार पर और आगे बढ़ाई जा सकती है।'
जेटली ने इस कदम को डेलीगेशन ऑफ पावर रूल्स, 1978 के तहत मंजूरी दी है, जिसमें वित्त मंत्री को कोई भी कर बकाया माफ करने का अधिकार है। इस नियम के तहत मुख्य आयुक्तों को सिर्फ 25 लाख रुपये तक का बकाया माफ करने का अधिकार है।
पीडब्ल्यूसी के प्रत्यक्ष कर के लीडर राहुल गर्ग ने कहा, 'यह एक अच्छा कदम है। बकाये की वसूली की लागत और मिलने वाली राशि का विश्लेषण जरूर होना चाहिए। यह छोटी शुरुआत है। अगर संग्रह की लागत बहुत ज्यादा है तो यह करदाताओं पर सिर्फ बोझ है।