जेटली ने अकुशल और गैरकृषि कार्य में लगे मजदूरों की मजदूरी प्रति दिन 246 रुपये से बढ़ाकर 350 करने की घोषणा की है। दूसरी तरफ ट्रेड यूनियन की मांग है कि इन मजदूरों को प्रति दिन 692 रुपये के हिसाब से हर महीने 18,000 रुपये मिले। इसके साथ ही यूनियन दो साल के बोनस की मांग कर रहे हैं।
31 मार्च, 2015 के सरकारी डेटा के मुताबिक केंद्रीय क्षेत्रों में ठेके के मजदूरों की संख्या 19,03,170 थी। राज्यों में काम करने वाले ठेके के मजदूरों की आधिकारिक संख्या का पता नहीं है। ठेके के मजदूरों का संचालन कॉन्ट्रैक्ट लेबर ऐक्ट, 1970 के तहत होता है। इसके तहत वे ही कंपनियां या कॉन्ट्रैक्टर आते हैं जहां 20 या 20 से ज्यादा लोग काम करते हैं।
सैलरी में विसंगतियों का निपटारा बिना नियम को बदले संभव नहीं है। न्यूनतम मजदूरी को यहां महंगाई से जोड़ने की जरूरत है। यदि मजदूरों को प्रति दिन 350 रुपये का भुगतान किया जाता है तो इन्हें महीने में 26 दिन काम करने पर 9,100 रुपये ही मिलेंगे। दूसरी तरफ सरकार ने सातवें पे कमिशन में न्यूनतम 18,000 प्रति महीने सैलरी की सीमा रखी है। यहां सरकार खुद ही असमानता की नीति को प्रोत्साहित कर रही है। जाहिर सी बात है कि घर में कमाने वाला कोई एक है और उसकी मंथली कमाई 9,100 रुपये है तो जीवन चलाना आसान नहीं होगा।