चॉक एन डस्टर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर बड़े सवाल खड़े करती है। इस सवाल में विद्या सावंत (शबाना आजमी), ज्योति ठाकुर (जूही चावला) बराबर से सहयोग देती हैं। निजी स्कूलों की कार्यप्रणाली और अंदरूनी राजनीति के बीच जयंत ने बहुत अच्छा तालमेल बनाया है।
इस फिल्म में भी वही दिक्कत है, जो आम भारतीय हिंदी फिल्मों में होती है। इंटरवेल के बाद फिल्म को चलाए रखना चुनौती होती है। चॉक एन डस्टर इंटरवेल के बाद अति नाटकीय रूप ले लेती है। मीडिया का उबाऊ इस्तेमाल, क्विज कार्यक्रम और अपनी बात रखने के नाम पर जूही चावला का ज्ञान बांटना। इस सब से फिल्म के पहले भाग का प्रभाव कम होता है, लेकिन फिर भी यह जरूरी फिल्म है जिसे देखा जाना चाहिए।
शबाना आजमी ने एक स्कूल टीचर की भूमिका को बहुत विश्वसनीयता से निभाया है। जूही चावला और वह अपने कंधों को फिल्म ले कर चली हैं। दिव्या दत्ता ने खलनायिका की भूमिका में टेलीविजन की खराब बहू की तरह हावभाव देने की कोशिश की है। अगर वह ऐसा नहीं भी करतीं तो भी काम चल सकता था।