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छोरे से कम नहीं ये ‘दंगल’ करने वाली छोरियां

किसी फिल्म को देखने के लिए सबसे पहले सवाल आता है कि इस फिल्म को क्यों देखना चाहिए। अगर दंगल के बारे में भी यही प्रश्न मन में है तो इसे इसलिए देखना चाहिए कि यह एक विश्वसनीय फिल्म है, किरदारों से लेकर लोकेशन तक, अभिनय से लेकर भावनाओं तक। यह कहानी गीता-बबीता से ज्यादा महावीर सिंह फोगाट की कहानी है।
छोरे से कम नहीं ये ‘दंगल’ करने वाली छोरियां

कसा हुआ निर्देशन और पटकथा किसी फिल्म की पहली और अनिवार्य शर्त है। दंगल इस शर्त पर खरी उतरती है। मुट्ठी में फिसलती रेत की तरह यह फिल्म कब अंत तक पहुंचती है पता ही नहीं चलता। कहीं कोई शिक्षा का लंबा आख्यान नहीं, उपदेश नहीं। घटनाएं कहानी को हल्के हास्य और कठोर परिस्थिति के साथ आगे बढ़ाती है। कहानी धीमे धीमे आगे बढ़ती है लेकिन उबाऊ नहीं लगती। निर्देशक ने हर चरित्र पर मेहनत की है और स्थापित होने का पूरा मौका दिया है। महावीर सिंह फोगाट के चरित्र में आमिर खान ने सच में उस चरित्र को जिया है।

 

फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, अपारशक्ति खुराना ने भी अपनी छाप छोड़ी है। निर्देशक नितेश तिवारी ने पूरा ध्यान रखा है कि मैच के दौरान पैदा होने वाला रोमांच दर्शकों की रगों में भी दौड़े। यह कहानी एक बदली हुई सोच की भी कहानी है जो लड़के और लड़की के बीच में अंतर करते हैं। बचपन की भूमिका में गीता-बबीता की भूमिका करने वाली जायरा वसीम और सुहानी भटनागर ने बहुत अच्छे से किरदार को स्थापित किया है। 

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