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फिल्म समीक्षा: सोनू, टीटू और स्वीटी तीनों छा गए

सोनू के टीटू की स्वीटी। नाम भले ही टंग ट्विस्टर हो लेकिन दिमाग ट्विस्ट नहीं होता। सोनू और टीटू बचपन के...
फिल्म समीक्षा: सोनू, टीटू और स्वीटी तीनों छा गए

सोनू के टीटू की स्वीटी। नाम भले ही टंग ट्विस्टर हो लेकिन दिमाग ट्विस्ट नहीं होता। सोनू और टीटू बचपन के दोस्त हैं और सोनू टीटू को हर परेशानी से बचाता है हमेशा फिर भले ही वह गलत लड़की के चक्कर में फंसने की परेशानी ही क्यों न हो।

कार्तिक आर्यन (सोनू) और नुसरत भरूचा (स्वीटी) को देखकर कुछ-कुछ प्यार का पंचनामा टाइप फीलिंग आती है लेकिन सन्नी सिंह (टीटू) इसे थोड़ा अलग अंदाज दे ही देते हैं। एक फैमिली है प्यारी सी। लाउड पंजाबियों टाइप। खानदान को गाली दो चलेगा लेकिन उनकी दुकान में बनी मिठाई को गाली दी तो सहन नहीं होगा।

निर्देशक लव रंजन ने भी वीमन सेंट्रिक फिल्म भी बनाई है लेकिन उनकी वीमेन सेंट्रिक में लड़की विलेन है। प्यारी सी खूबसूरत सी चालू टाइप विलेन। सोनू और स्वीटी के बीच की जंग फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाती है और दर्शक हर सीन पर सोचते हैं कौन जीतेगा-सोनू या स्वीटी। टीटू बेचारे को तो हर हाल में हारना है। इसलिए उसकी बात करने का कोई फायदा नहीं।

फिल्म में डायलॉग से ज्यादा तो बीप की आवाज है। दर्शकों को भी पता है कि बीप के पीछे क्या है लेकिन चलता है, भारत में परदेदारी हो न हो, परदेदारी का नाटक खूब चलता है। इस फिल्म ने सिर्फ भाषा को ही भ्रष्ट नहीं किया है बल्कि  यह फिल्म अपने संस्कारी बाऊजी (आलोक नाथ) के भी भ्रष्ट होने की भी वजह बनी है। बाऊजी इस फिल्म में सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं और ऐसे संवाद भी बोलते हैं जिन्हें बीप से छुपाना पड़े!

प्रेम और युद्ध में सब जायज नीति की यह फिल्म इस वीकएंड पर जरूर देखी जा सकती है। कार्तिक आर्यन और नुसरत भरूचा ने प्यार में शह-मात के खेल को खूब रोमांचक तरीके से खेला है। हां अगर आपको इस फिल्म को देखते हुए हॉलीवुड की कुछ फिल्में याद आएं तो कोई बात नहीं नकल में भी अकल की जरूरत होती है। यदि नकल ठहाके लगाने पर मजबूर कर दे तो उसे नकल नहीं कहते।  

आउटलुक रेटिंग 3 स्टार 

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