अख्तर ने कहा, कम से कम हमारे समाज से कोई इसकी उम्मीद नहीं करता। मैं ऐसी चीजें भारत में होने की उम्मीद नहीं करता। ऐसी चीजें किसी और समाज में सुनी जाती हैं, हमारे यहां नहीं। यहां जो हो रहा है, कोई उस पर गर्व महसूस नहीं करता।
अख्तर ने बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में जानी मानी लेखिका नयनतारा सहगल के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के फैसले का समर्थन किया।
अपने अंग्रेजी उपन्यास रिच लाइक अस के लिए 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नयनतारा ने कहा, आज की सत्ताधारी विचारधारा एक फासीवादी विचारधारा है और यही बात मुझे चिंतित कर रही है। अब तक हमारे यहां कोई फासीवादी सरकार नहीं रही। मुझे जिस चीज पर विश्वास है, मैं वह कर रही हूं।
अख्तर ने कहा , मैं उनकी पीड़ा समझ सकता हूं। वह धर्मनिरपेक्षता और बेहतर मूल्यों की परंपरा से आती हैं तथा जब उन्होंने इस चीज को महसूस किया होगा तो उन्हें जरूर तकलीफ हुई होगी। यह एक विरोध है लेकिन मुझे लगता है समाज में अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। देश में इस समय जो कुछ हो रहा है, वह गैर जरूरी है।
अख्तर मानते हैं कि लेखकों को असल में और अधिक संवाद करना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अपनी बात लिखना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका लिखा लोगों तक पहुंच सके। मैं यह कहने कोई नहीं होता कि नयनतारा को क्या करना चाहिए था, लेकिन तथ्य यह है कि यह भी एक विरोध है और इसने ध्यान खींचा है और लोगों को सोचने पर विवश किया है।