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मेरे पिता : कर्म ही था उनका ईश्वर

राजेश्वरी पुत्री: संगीतकार लक्ष्मीकांत   पि ताजी को याद करते हुए बचपन की तमाम स्मृतियां याद आती हैं।...
मेरे पिता : कर्म ही था उनका ईश्वर

राजेश्वरी

पुत्री: संगीतकार लक्ष्मीकांत

 

पि ताजी को याद करते हुए बचपन की तमाम स्मृतियां याद आती हैं। पिताजी चूंकि अपने समय के सबसे मशहूर संगीतकार थे इसलिए उनके पास हमेशा ही समय का अभाव रहता था। बावजूद इसके उन्होंने सुनिश्चित किया कि बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह हो। उन्होंने हमेशा ध्यान रखा कि बच्चों को सभी संस्कार मिलें। पिताजी का पूरा सप्ताह गीतों की रिकॉर्डिंग में व्यस्त रहता था। प्रतिदिन कम से कम दो गीत रिकॉर्ड होते थे। इस व्यस्तता के बीच पिताजी की कोशिश रहती थी कि शनिवार और रविवार को वह हमारे साथ समय बिताएं।

 

पिताजी को क्रिकेट मैच देखने का बड़ा शौक था। जिस रोज क्रिकेट मैच होता, हम सभी घर में उत्सव का माहौल महसूस करते थे। पिताजी पूरे परिवार के साथ मैच देखते थे। पिताजी को टेबल टेनिस से भी लगाव था। मुझे याद आता है कि पिताजी ने चुपके से मेरे साथ बाजार जाकर टेबल टेनिस का टेबल खरीदा था। पिताजी ने हर बार मेरा मनोबल बढ़ाया। उन्हें देखकर ही मुझे प्लेबैक सिंगिंग की प्रेरणा मिली। पिताजी अपने काम को लेकर पूर्ण रूप से समर्पित थे। उन्हें कोई कमी मंजूर नहीं थी। इसलिए जब मैंने प्लेबैक सिंगिंग की सोची तो उन्होंने मुझे कोई रियायत नहीं दी। मेरे लिए भी वही पैमाने थे, जो अन्य गायक, गायिकाओं के लिए थे। अभी मुझे महसूस होता है कि मैं खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसे पिता मिले। उस समय बहुत अधिक महिलाएं फिल्म जगत में सक्रिय नहीं थीं। लड़कियों का यूं भी समाज में प्रतिनिधित्व कम था, मगर पिताजी ने कभी मुझमें और मेरे भाई में फर्क नहीं किया। मुझे हर अवसर, हर सुविधा मिली। पिताजी ने आजीवन हमें विनम्रता और दया का पाठ पढ़ाया।

 

उन्होंने हमेशा कहा कि यदि आपके हृदय में करुणा है, प्रेम है तो आप सबसे सफल इंसान हैं। यहां एक महत्वपूर्ण बात मैं कहना चाहूंगी। पिताजी ने हमें सभी सुख और सुविधाएं उपलब्ध कराईं, मगर उन्होंने हमें कभी यह एहसास होने नहीं दिया कि हम किसी मशहूर इंसान की संतान हैं। उन्होंने सदा सामान्य चाल-चलन को ही प्राथमिकता दी। दिखावे और ढोंग से पिताजी हमेशा दूर रहते थे। उनके लिए कर्म ही ईश्वर था। उनका सारा लगाव अपने काम से था। ज्ञान का उनके लिए महत्व था। उन्होंने पूरा पुरुषार्थ लगाया कि उनके बच्चे ज्ञान अर्जित करें। पिताजी को अपनी मां से बहुत लगाव था। उनके जीवन में मां के प्रेम और सेवा से बढ़कर कुछ नहीं था। उन्होंने आजीवन हमें यही सीख दी कि मां का सम्मान और सेवा जीवन को रोशन करती है।

 

(मनीष पाण्डेय से बातचीत पर आधारित)

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