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भारत में महिलाएं उतनी आजाद नहीं, जितना वो होने की कल्पना करती हैं: अलंकृता

फिल्म निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव का मानना है कि भारत का सेंसर बोर्ड दरअसल देश के नागरिकों का प्रतिनिधित्व ही नहीं करता है। इसलिए फिल्मकारों को अपनी तीखी कहानियों को बयां करने के लिए कठोर रुख अपनाना होगा। उन्होंने अपनी ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरका’ को लेकर उठे विवाद के बाद कहा, भारत में महिलाएं उतनी आजाद नहीं हैं जितना कि वो होने की कल्पना करती हैं।
भारत में महिलाएं उतनी आजाद नहीं, जितना वो होने की कल्पना करती हैं: अलंकृता

अलंकृता के निर्देशन में बनी फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरका’ को उसके दृश्यों और संवादों की वजह से सेंसर बोर्ड की मंजूरी नहीं मिली थी जिसके बाद फिल्म निर्माताओं ने फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (एफसीएटी) का दरवाजा खटखटाया। एफसीएटी ने अंतत: सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया कि फिल्म को ‘ए’ प्रमाण पत्र दिया जाए।

रविवार को न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन इस फिल्म के साथ हुआ जिसमें रत्ना पाठक शाह, कोंकणा सेनशर्मा, आहना कुमरा और प्लाबिता बोरठाकुर की मुख्य भूमिकाएं हैं।

फिल्म निर्देशक अलंकृता ने कहा कि उन्हें फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरका’ के लिए भारत के युवक-युवतियों से बहुत समर्थन मिला है। उन्होंने फिल्म के प्रदर्शन के बाद फिल्मोत्सव के निदेशक असीम छाबड़ा से बातचीत में कहा, मुझे लगता है कि यह सही वक्त है हम अपनी उन कहानियों को भी बयां करें और उन अनुभवों को भी साझा करें जो थोड़े कठोर हो सकते हैं।

अलंकृता ने इस मौके पर कहा कि फिल्म को लेकर उठे पूरे विवाद से उन्हें लगा कि भारत में महिलाएं उतनी आजाद नहीं हैं जितना कि वो होने की कल्पना करती हैं।

साथ ही, अलंकृता ने यह भी कहा, हो सकता है कि हम कुछ लड़ाइयां हार जाएं, लेकिन हमें यह सब जारी रखना होगा। हमारे पास समानता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को हकीकत में तब्दील करने के लिए कोई और रास्ता नहीं है।

फिल्म की स्क्रीनिंग में पेप्सी की प्रमुख इंद्रा नूई, लेखक सलमान रश्दी और न्यूयॉर्क में भारत की महावाणिज्य दूत रीवा गांगुली दास ने भी भाग लिया।

 

 

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