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बख्तियारपुर: एक विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर क्यों है इस शहर का नाम?

“गांधीजी ने जब ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ और भारतीयों के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया तो इस छोटी-सी...
बख्तियारपुर: एक विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर क्यों है इस शहर का नाम?

“गांधीजी ने जब ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ और भारतीयों के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया तो इस छोटी-सी जगह से आजादी की लड़ाई में सैकड़ों लोग कूद पड़े”

 

नहीं बदला नाम

अनेक झंझावातों को झेलते हुए एक विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर बसा पटना जिले का बख्तियारपुर हाल में बहुत चर्चा में रहा है। लोगों को यह वर्षों से साल रहा है कि आखिरकार इस शहर का नाम एक विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर क्यों है? अपने आप में परेशान-सा और बेतरतीब नजर आने वाले बख्तियारपुर के ‘अपनों‘ ने जब सूबे की कमान संभाली, तो धीरे-धीरे उसकी सूरत बदल गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहीं के वासी हैं। जबसे उन्होंने कह दिया कि गंगा की पवित्र जलधारा को अपने दामन में समेटे इस शहर का नाम नहीं बदला जाएगा, तबसे नाम बदलने की चर्चा खटाई में पड़ गई।

खिलजी की यादें

प्राचीन काल में 16 महाजनपदों में सबसे बड़ा महाजनपद था मगध। मगध की राजधानी राजगिर और पाटलिपुत्र भी रही है। उस समय आवागमन का मुख्यमार्ग था, जलमार्ग। बाहर के लोगों को जब मगध की राजधानी जाना होता, तो गंगा नदी के जलमार्ग से बख्तियारपुर आकर ही इन दोनों स्थानों पर जाते। विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी का बेटा इख्तियार इब्न बिन बख्तियार खिलजी गंगा नदी के जलमार्ग से यहां पहुंचा था और अपना पड़ाव डाला था। उसी ने अपने पिता के नाम पर इस शहर का नाम बख्तियारपुर कर दिया।

क्रांतिकारियों की जमीन

गांधीजी ने जब ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ और भारतीयों के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया तो इस छोटी-सी जगह से आजादी की लड़ाई में सैकड़ों लोग कूद पड़े। नौ अगस्त, 1942 को बड़ी संख्या में आजादी के दीवानों ने बख्तियारपुर थाने पर चढ़ाई कर दी। उग्र आंदोलन को देखते हुए अंग्रेज अधिकारी ने थानेदार को गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें नाथुन सिंह यादव शहीद हो गए। इस गोलीबारी में मोगल सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए, दर्जनों चोटिल हुए। बाद में, मोगल सिंह की मौत इलाज के दौरान हो गई। इस गोलीकांड के बाद पूरे क्षेत्र में आक्रोश बढ़ गया। रेल लाइन और सड़क मार्ग पूरी तरह से बाधित कर दिए गए। वहीं, यहीं के वीर सपूत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के निकट सहयोगी शीलभद्र याजी अंग्रेजों के छक्के छुड़ा रहे थे। इन्हें कालापानी की सजा दी गईं। कहते हैं कि जहाज से जाते समय समुद्र में ही छलांग लगा देने वाले शीलभद्र याजी तैरकर भाग खड़े हुए, अंग्रेजी हुकूमत देखती रही। इनके अलावा सौ के करीब आजादी के दीवानों को विभिन्न तरह की सजा में कठोर यातनाएं झेलनी पड़ीं। फिर भी ये लोग अंग्रेजों के सामने नहीं झुके। इनमें से कई शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियां अलग-अलग स्थानों पर लगी हैं, जो आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र हैं। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी शीलभद्र याजी के नाम पर स्मृति भवन बना है। 

नीतीश की जन्मभूमि

राजनीति के लिए यहां की भूमि बड़ी उर्वर रही है। यहां की पहली विधायक पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की बहन सुंदरी देवी थीं। वे कई बार विधायक रहीं। लेकिन, बड़ी पहचान नीतीश कुमार ने दिलाई। यह उनकी जन्मभूमि है। पिछले डेढ़-दो दशक में यहां बहुत कुछ बदल गया। शहर को छोड़ कर दूर चली गई गंगा नदी की मुख्यधारा को शहर किनारे लाया गया और इसी किनारे मैरिन ड्राइव बनाने की योजना प्रस्तावित है। इस शहर को समस्तीपुर के ताजपुर से जोड़ने के लिए गंगा नदी पर पुल बन रहा है। जिला परिषद का जर्जर डाकबंगला अब भव्य भवन में बदल गया है। श्री गणेश उच्च विद्यालय (इसी में नीतीश की पढ़ाई हुई है), प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय की सूरत बदल गई।

फुटबॉल का जुनून

क्रिकेट के प्रति देश में लगाव बढ़ा तो उससे अन्य खेल पीछे छूट गए। फुटबॉल जैसा लोकप्रिय खेल भी इसकी जद में आ गया। लेकिन इस शहर में आज भी लोगों को फुटबॉल से लगाव है। आजादी के बाद यहां की फुटबॉल टीम नेशनल स्पोर्टिंग क्लब की बिहार में काफी प्रसिद्धि थी। प्रति वर्ष यहां होने वाला प्रतिष्ठित गंगासिंह दिलीप सिंह फुटबॉल टूर्नामेंट में बाहर की टीम भाग लेती थीं। बाद में फुटबॉल के प्रति घटते लगाव को देख आयोजकों ने इस टूर्नामेंट को बंद कर दिया। लेकिन आज भी प्रति वर्ष 31 दिसंबर को एक दिवसीय हंसराज सिंह मेमोरियल फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित होता है।

राय जी की चाय दुकान

रेलवे का लोको शेड कारोबारियों के लिए महत्वपूर्ण था, अब बंद हो चुका है। प्रसिद्ध रंगकर्मी, नाटककार और दरभंगा आकाशवाणी के निदेशक रह चुके चतुर्भुज ने यहीं अपनी नाट्य संस्था ‘मगध कलाकार’ की स्थापना की थी। उससे जुड़े कई रंगकर्मियों ने बड़ी बुलंदी हासिल की। अब रंगकर्म के नाम पर कुछ भी नहीं है। सरकारी बंदूक कारखाना और तीन-तीन सिनेमा हॉल बंद हो गए। टमटम की जगह ई-रिक्शा ने ले लिया है। फोरलेन पर कुल्हड़ की चाय वाली एक दर्जन से अधिक दुकानें खुल गई हैं, लेकिन तिराहा पर सुरो की चाय-लस्सी की दुकान, सीता हलवाई की मिठाई दुकान अब यादों में है। राय जी की चाय दुकान भी बंद हो गई। कहा जाता है कि राय जी की चाय दुकान में सुबह पांच बजे से रात बारह बजे तक चाय के प्याले में पटना से दिल्ली तक की राजनीति छलकती थी। यहां पर चाय पीने के लिए नीतीश कुमार समेत अनेक नेता-बुद्धिजीवी शामिल होते थे।

(कविता संग्रह अतीत की पगडंडियों पर और मैं सपने बुनता हूं)

 

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