राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) अपनी सियासी जमीन की रक्षा में जुटी है और विधानसभा चुनाव में दलित मतदाता बेहद अहम हैं। हालांकि विपक्षी दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आप को चुनौती दे रही हैं और इससे संभावना है कि तीनों दलों के बीच दलित मतों का बंटवारा हो जाए। दिल्ली विधानसभा चुनाव के समीकरण को लेकर विशेषज्ञों ने यह बात कही।
अरविंद केजरीवाल नीत आप दिल्ली में सत्ता बरकरार रखने को लेकर पुरजोर प्रयास कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि ‘आप’ को अतीत में दलित मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ है, लेकिन इस बार कुछ हद तक दलितों में निराशा भी है। वहीं, भाजपा ने दलितों के लिए कई वादे किए हैं और वह दलित बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में व्यापक संपर्क कार्यक्रम आयोजित कर रही है।
हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर पर की गई टिप्पणी ने ‘आप’ और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को भाजपा पर हमलावर होने का मौका दे दिया। इसके बाद बयानबाजी और तेज हुई, हालांकि, भाजपा ने इसका आक्रामक तरीके से जवाब दिया है।
वर्ष 2020 के दिल्ली चुनावों में, आप ने अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सभी 12 सीट जीती थीं और काफी वोट हासिल किए थे, जिसकी मदद से पार्टी ने राजधानी में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार वोट तीन तरफ बंट सकते हैं।
स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक तथा सबाल्टर्न मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एवं निदेशक कुश आंबेडकरवादी ने कहा, “हालांकि दलित मतदाता सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूद हैं, लेकिन दिल्ली में कम से कम 30-35 सीट ऐसी हैं, जहां वे चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। आप को कुछ समर्थन खोने की आशंका है तथा दलित वोट तीन प्रमुख दलों के बीच बंटने की संभावना है।”
आंबेडकरवादी ने ‘पीटीआई-’ से कहा, “केजरीवाल के कार्यालय में जो दो तस्वीरें हैं, वे बी आर अंबेडकर और भगत सिंह की हैं, क्योंकि दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में भी दलित बड़ी संख्या में हैं। आप का चुनाव चिन्ह झाड़ू भी दलित मतदाताओं को आकर्षित करता है और वे इससे जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। दलित मतों का एक बड़ा हिस्सा पार्टी को गया था। लेकिन आज दलित समुदाय केजरीवाल से उतना खुश नहीं है, क्योंकि उनके जीवन में ज्यादा बदलाव नहीं आया।”