अनिल माधव दवे ने 5 जुलाई 2016 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला था। दवे जल संसधान समिति और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार समिति में बतौर सदस्य शामिल रहे। ग्लोबल वार्मिंग पर संसदीय समिति में भी वह सदस्य थे। बहुत कम लोगों को पता होगा कि सादे जीवन के मालिक दवे को हवाई जहाज उड़ाने का बहुत शौक था। वह एक कॉमर्शियल पायलेट थे।
दिसंबर 2003 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार को सत्ता से बाहर करने में उमा भारती के साथ मिलकर इन्होंने जो रणनीति बनाई थी वह बहुत कारगर साबित हुई थी।
नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए उन्होंने 2005 में नर्मदा समग्र संगठन बनाया था। वह पयार्वरण की समस्याओं पर हमेशा गहन अध्ययन करते रहे। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते का भारत की ओर से अनुमोदन किये जाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
पर्यावरण पर उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। पर्यावरण मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल को अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था। सृजन से विसर्जन तक, चन्द्रशेखर आजाद, सम्भल कर रहना घर में छुपे हुये गद्दारों से, शताब्दी के पांच काले पन्ने, नर्मदा समग्र, समग्र ग्राम विकास, अमरकंटक टू अमरकंटक और बियॉन्ड कोपनहेगन उनकी लिखी पुस्तकें हैं।
पीएम मोदी ने दवे के निधन को अपनी निजी क्षति बताया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसे अपूरणीय क्षति बताया है।