सुप्रीम कोर्ट ने असम एनआरसी सूची से बाहर रखे गए लोगों के नाम 31 अगस्त को ऑनलाइन प्रकाशित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि आधार की तरह ही एनआरसी के आंकड़ों को सुरक्षित रखने के लिए उचित व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। साथ ही कहा कि पूरी एनआरसी प्रक्रिया को केवल कुछ कानूनी चुनौतियां खड़ी किए जाने की वजह से दोहराने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'जिला कार्यालयों में उपलब्ध कराए जाने वाले इनक्लूजन (नाम जोड़े गए) और एक्सक्लूजन (नाम हटाए गए) की सूचियों की केवल हार्ड कॉपी उपलब्ध कराई जाएगी। धारा 66ए आदेश में निर्धारित कानून के अनुसार एनआरसी का अद्यतन किया जाना चाहिए।'
इससे पहले केंद्र सरकार ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी को अद्यतन करने के लिए गणना प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समय-सीमा एक महीने के लिए बढ़ा दी है और अब 31 अगस्त तक राज्य के निवासियों की अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी।
इसलिए लिया गया यह फैसला
एक अधिसूचना में भारत के महापंजीयक ने कहा कि यह फैसला इसलिए किया गया क्योंकि नागरिक राष्ट्रीय पंजी (एनआरआईसी) के लिए नागरिकों की गणना की प्रक्रिया 31 जुलाई की निर्धारित अवधि तक पूरी नहीं हो सकी।
छह दिसंबर 2013 को सरकार ने पहली बार जारी की थी अधिसूचना
उल्लेखनीय है कि छह दिसंबर 2013 को सरकार ने पहली बार अधिसूचना जारी करते हुए राष्ट्रीय नागरिक पंजी की समूची प्रक्रिया को पूरी करने के लिए तीन साल की समय सीमा निर्धारित की थी। हालांकि, उसके बाद से नागरिक पंजी को अद्यतन करने के लिए इसकी समय सीमा छह बार बढाई गई है, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हो सकी है।
जब राष्ट्रीय नागरिक पंजी का मसौदा पिछले साल 30 जुलाई को पहली बार प्रकाशित हुआ था तब काफी विवाद पैदा हुआ था क्योंकि इसमें 40 लाख से अधिक लोगों को शामिल नहीं किया गया था। अब 31 अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी की अंतिम सूची का प्रकाशन होगा।
30 जुलाई 2018 को जारी हुआ था असम में एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट
बता दें कि असम में एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट गत 30 जुलाई 2018 को जारी हुआ था जिसमें करीब 40 लाख लोग बाहर रह गए थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि दावा पेश करते समय व्यक्ति दस दस्तावेजों में से किसी एक या उससे ज्यादा को आधार बना सकता है। बाकी के पांच दस्तावेजों को आधार बनाए जाने पर कोर्ट ने संयोजक हजेला से 15 दिन में उनका नजरिया मांगा।
सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सभी 15 दस्तावेजों को आधार बनाने की इजाजत मांगते हुए कहा था कि असम के ज्यादातर लोग गांव में रहने वाले और कम पढ़े लिखे हैं, जो छूट गए हैं उन्हें अपना दावा करने के लिए मौका मिलना चाहिए।