भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया है, जिसमें उसने महाराष्ट्र पुलिस को आरोप-पत्र दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया था। हालांकि महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप-पत्र दायर कर दिया है, इसलिए शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस मामले में गिरफ्तार किए गए पांच कार्यकर्ता अब नियमित जमानत की मांग कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुणे ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बहाल करने की अनुमति दी है जिसमें पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए अतिरिक्त 90 दिनों का समय दिया गया है।
10 जनवरी को सुरक्षित रख लिया था फैसला
इससे पहले 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में वकील सुरेंद्र गडलिंग, सामाजिक कार्यकर्ता शोमा सेन, रोना विल्सन, सुधीर धवले और महेश राउत जून 2018 से हिरासत में हैं। पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं के दफ्तर और घरों पर छापेमारी के बाद इन्हें गिरफ्तार किया गया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती
महाराष्ट्र सरकार ने 25 अक्टूबर को बॉम्बे हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अगर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो हिंसा के मामले में आरोपी तय वक्त में आरोप-पत्र दायर न हो पाने के चलते जमानत के हकदार होंगे। दूसरी ओर, गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं की दलील थी कि उन्हें जमानत मिलनी चाहिए, क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस तय 90 दिनों की अवधि के भीतर आरोप-पत्र दायर नहीं कर पाई और ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई अवधि कानूनी तौर पर सही नहीं थी।