तालिबान को कब्जा किए हुए लगभग तीन सप्ताह हो रहा है, लेकिन अभी तक तालिबान के किसी भी नेता ने सरकार बनाने के बारे में अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। इस बीच भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि तालिबान में किस तरह की सरकार बनेगी या फिर उसका नेचर कैसा होगा, इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं है। गुरुवार को विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का तत्काल जोर यह सुनिश्चित करने पर है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल उसके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाए। इसके दो दिन पहले ही कतर में भारतीय दूत ने तालिबान के एक शीर्ष नेता के साथ बातचीत की थी।
मीडिया से बातचीत में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत ने दोहा बैठक का इस्तेमाल भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए अफगान क्षेत्र के संभावित उपयोग को लेकर अपनी चिंताओं को व्यक्त करने तथा बाकी भारतीयों को अफगानिस्तान से वापस लाने के संबंध में किया। उन्होंने कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल और तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानकजई की मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा, "हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।"
बैठक की पृष्ठभूमि में तालिबान शासन को क्या भारत मान्यता देगा, इस संबंध में पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब में बागची ने कहा, "यह सिर्फ एक बैठक थी। मुझे लगता है कि ये अभी काफी शुरुआती दिन हैं।" उन्होंने कहा, "मैं भविष्य के बारे में अटकलें नहीं लगाना चाहता। मेरे पास उस सबंध में साझा करने के लिए कोई नयी जानकारी (अपडेट) नहीं है।"
तालिबान के साथ जुड़ाव के संभावित रोडमैप के बारे में पूछे जाने पर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा: "यह हां या ना का सवाल नहीं है। हम बिना सोचे-समझे कुछ भी नहीं करते।"
उन्होंने कहा, "हमारी प्राथमिक तात्कालिक चिंता यह है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों और भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए। हमारा ध्यान इस पर है। देखते हैं क्या होता है।"